ओ सांच है
समंदर रै बिच्चै रैवै वो
पण ओ भी सांच है
अबाणूं
समंदर रो सगळो पाणी
बादळां री कैद में है
ओ सांच है
उणरै दोन्यू हाथां में लाडू है
पण ओ भी सांच है
उणरा दोन्यूं हाथ
पूरो बदन
अठा तलक.. कै सगळी संवेदनावां
गिरवी पड़ी है आकास में
उणरै हाथां में थमाय कै
कागज
मजबूर करणों
इतिहास लिखण सारू
अगन रो
कठारो न्याव हुयो?
फेरूं थमा देवणों
हाथां में किताब
बिखर्योड़ी जिनगाणी री
उणनै
तरतीब सूं जमावो
संवारो
भणो अर भणावो
जद
किताब रो
अेक-अेक आखर
अहंकारी-ताप
आंधळतो-आळस
भूखी-दीठ
अर
आवारा जिद्दीपण सूं
मुड़्यो-तुड़्यो हो
अहंकारी-ताप
तिल-तिलकर मारै है
आंधळतो आळस
थोड़ो-घणो करणो चावै है
भूखी दीठ
पावण नै आगती हुवै
आवारा जिद्दीपणो
खुली छूट लैवणो चावै
मन रो
पखेरू नापै आकास
पण कुण रोकै पखेरू नै
कान में कैवण सारू
अेक मरम री बात
भायला
चालता-चालता थाक जावै
ठौड़ निजरै कौनी आवै
तो आजै म्हारी छांव
रूंख है म्हारो नांव
म्हूं रूंख हूं
मरूथळ रो ही सही
पण
म्हारी भी अेक छांव है
म्हारो भी अेक गांव है।