थूं कुण ऊभी

हे सयाण सूरत

पासाण मूरत

नगन देह

भगन गेह

अतीत री कळा द्रस्टि तळै

जोवै केई जुग सूं

भाव भंगिमा भरिया

थारा अंग-अंग

झलती जोड़ी रा

प्राण पिया री बाट

हे प्रीतपनी परणेतण पूतळी

केई नैण निरख-निरख

निकळिया होसी

थारै गेह बार

पण हूं बतळाऊं

अबोली बोल!

कण थनैं मिलण वचन दे’र

वचन हारियो

जिणरो—

अेक पग ऊभी

अेकटक

थूं पंथ निहारै

हे ओळूं उळझी

संकोचण सुंदरी

इण ऊंचै पयोधरां

ऊंडी धीरज धरण कळा

किण सूं सीखी?

हे कळाजायी कामणी

म्हे तो गीत सुण्यो

काव्य पढ्यो

आंख देख्यो—

केई'क झुरती विरहणियां रा

वैरी विरह ताप

लाखीणा तन खीण किया

पण थूं तो

जुग बित्यां ही

जोबन मदमाती

अर अजै लग गमकै

निरत रत काम री कामण धुनी

थारै अंग-अंग री

मिजाज-भरी मंगेजण मरोड़ में...

हे उफणतै जोबन री

पासाण गोरड़ी!

थळ जायी

विरह ताप झुळसी

सकल गजगमण गोरियां रा

तरळ नैण मोती

किण किरतार कारीगर रै

प्रिया रूप साधना सांचै

आय सांगळिया

जिण खांतीलै

अमर खांत कर

थनैं सिरजी संवारी—

उरज पीण

कठी खीण

वसन हीण

वचन बंध अचंचळ सुंदरी

विरह समंद तळबळती

चिर प्रीत अगन री—

अखंड जोत

काळ हथेळी बिच

थां आगळ अस्टपौर जगै

तिण सूं पड़ियै काजळ रा कूंपला

किण चतर नार चोरिया

हे सयनहीण

पंथ लीण

पासाण सुंदरी!

स्रोत
  • पोथी : राजस्थान के कवि ,
  • सिरजक : नारायणसिंह भाटी ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा साहित्य एवं संस्कृति अकादमी बीकानेर ,
  • संस्करण : तीसरा
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