दीखण में तो
थिर दीखै
आपरी जागा-साइजम
टस सूं मस
नीं हुवता पा’ड़
लैणबन्धा पा’ड़
पण दैखै गौर सूं
तो साव लागै
भागती-बैवती
गूँजती नदी रै सागै
आसै-पासै रा पा’ड़
हर पळ हर छिन्न भागै
पा’ड़ जड़ नी है
चैतण है पा’ड़
तावडै में न्हाय
जागै है पा’ड़
मैह नै
हर्यै में लै'रावै पा’ड़
धौली बुराक बरफ री
चादर ओढ़
खुंखावै पा’ड़
पा’ड़ जड़ नीं है
चैतण है पा’ड़
ऊँचौ माथो
तणियो सीनो
गरबीलै हाव-भाव सूं
फूँकता रै
जीवण रो अरथ-पा’ड़
फैरूं कीकर हुया
थिर पा’ड़
फैरूं कीकर हुया
जड़ पा’ड़
पा’ड़ भी तो जात्री है
अर जात्रा ही जीवण
जद ही तो-
आपरी जागा-ऊभा-ऊभा ही
उतर आया-म्हारी आंख्यां
अर आंख्यां सूं रूं-रूं
अर म्हैं हुयग्यो हरी-भरी
हरियाळी अर रूंखां सूं
लद्यो-पद्यौ पा’ड़
अर बैवण लागग्यौ
अनोखे सुख रो झरणो
मांय रो मांय
पा'ड, जड़ नी हैं
चेतण है पा’ड़