नीं बुझण देवती दादी मां
वासदी घर रै चूलै रौ।
वा करती ही उणरा जतन।
करती दादी मां उणरी रुखाळी
आपरै डील सूं ई वधती।
वासदी नीं ही कोरी अगन।
दादी मां नै दीखती ही
वासदी री चिणखां मायं
पीढ़ियां अर ओळ
अेक संजीवणी।
दादी मां सांरू
घर रै चूलै वासदी
जतन हौ पीढ़िया रौ।
जतन सूं ईज तौ रुखाळिजिया करै
मांयलौ रतन।
रगत रै मांयली संजीवणी
अर
चूलै रै मांयली चिणखां
अेक ईज लागती दादी मां न।
वा कैवती-
जद घर रै चूलै री अगन सांत व्है जावै
ओळ रौ ओज बुझ जावै |
पीढ़ियां, पछै भरै निसकारा।
आदमी ‘वाजश्रवा ‘ बण जावै।
आगोतर रा करतौ फिरै लेखा
कमावै कूड़ा पाप’र पुन्न |
जद ईज तौ जावणौ पड़ै
किणी नचिकेता नै
जमराज री थळकण।
लेवण पाछी घर चूलै री
चेतन –चिणखां, ओळ री संजीवणी।
ओजाड़ भलांई कितरौ ई
छोटौ क्यूं नीं व्है?
राई बरोबर चिनियोसो'क ,
चिड़ी री चोंच भर।
पण ओजाड़ तौ ओजाड़ व्है |’
चेतन चूलै री चिणखां रौ
बुझ जावणौ –
‘दादी मां सारूं ओजाड़ हौ
मांयलै मिनख रौ।’
चिणखां मांय ऊमर भर देखी ही
दादी मां –
‘पीढ़िया री परझळती दीठ।'
अेक अनमी ओळ।
पाप पुन्न रै लेखै सूं
घणी आगी ,सपना जोवती पगडांडी।’
आज नीं रैया
माटी रा घर
घरां मायं नीं रैया
माटी रा चूला।
‘चेतन-चिणखां रौ सवाल ई कठै ?’
पछै कुण पृछै अर कुण ओळखैै
सवालू नचिकेता नै ?