बादळी
अबकाळै भादवै आप री बादळी,
अणमणी सी आई तो सरी बादळी।
थारै वियोग, हियो भर आयो तो-
आंसुवा रै मिस ओसरी, बादळी।।
लू
तिरस री तीख सूं आ पड़ी बा पड़ी,
खावती खेजड़ां, ‘खैरियां’ खांपड़ी।
चंद्रसिंह! चंद्रसिंह! चीखती लूवां,
अबकाळै तालां मैं, तावड़ै तापड़ी।।
डांफर
सीत मैं डंक सा भारती, सांप रा,
टापती, टूंपती,टापरा-टापरा।
अबकाळै ‘डांफरां’ बाजणो भुलगी,
आपरो जावणो, जाणी तो ठाकरां!
बसंत
बागां बसन्त रा सूझता दूहड़ा,
फूलां री सोरम नै पूजता, दूहड़ा।
जद भी थे आवोला पावोला आपरा,
धोरां री धरती पै गूंजता दूहड़ा।।
अन्य
धन्न फोगड़ा, खींपड़ा, जांटी,
धन्न गांव, आ गूंजती घाटी।
आप बिराज’र दूहड़ा मांडता-
गांव, आ गूंजती घाटी।
गांव, आ गूंजती घाटी।
धन्न हुई इण धीरै री माटी।