थांरी ओळ्यूं...

आज फेर इसी हुयगी

कै मनड़ो मिलण नै तरसै

थांनै देखण नै तरसै!

हरमेस कन्नै रैवो

बस दिखो कोनीं...

ओळ्यूं इत्ती है कै

आंख्यां में आंसू रुकै नीं

अजैलग थांरी आवाज़

काना में गूंजै...

...ओळ्यूं आई

पण थे कोनीं आया..!

स्रोत
  • सिरजक : भारती पुरोहित ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी
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