नींद बेच'र,

पिरोयो छै तूं

म्हंनै सबदा में।

इयां थोड़ी

जावै छै,

मझरातां तूं

सुपणां में।

घणो मोल चुकायो छै

म्हंनै

अर काटी छै

बना झपकायां

पलकां नै

कतनी रातां

चकोरी की नाईं

बिरह कै

लारां-लारां,

चालतां-चालतां बी

म्हंनै,

पकड़ मेल्यो छै,

अेक आस को

पल्लो।

काळी-कुट्ट

रात को।

कै कदी तो

ओस का मोती ल्यां,

होवैगो

सई

तड़काव..।

स्रोत
  • सिरजक : मंजू किशोर 'रश्मि' ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी
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