नींद नैं बेच'र,
पिरोयो छै तू
म्हनै सबदा मं।
यूं ही थोड़ी आ
जावै छै
मझरातां थूं
सुपणां मं।
घणों मोल चुकायो छै
म्हनै
अर काटी छै
पलकां नै,
बना झपकायां
कतनी ई रातां,
चकोरी की नांईं
बिरह कै
लारां-लारां,
चालतां-चालतां बी
म्हनै,
पकड़ मैल्यो छै,
अेक आस को
पल्लौ।
काळी-कट्ट
रात को।
कै कदी तो
ओस का मोती ल्यां,
होवैगो
ई सई
तड़काव।