अज ताईं हिलै है
किंवाड़ री कवळी कबांणी
वौ पूंण के पाव सईका पैली
अबार-अबार सिधायौ है।
आधा उघड्योड़ा अर आधा ओडाळ्योड़ा
आडा रा पल्ला मांय कर
आवै जिकौ बायरौ
इण में हाल उणरौ निवास है
हाल तौ वौ आपरै चाळीस में चौमासै भींजतौ व्हैला ।
म्हैं डेरफेरी व्हियोड़ी क्यूं बैठी हूं
काया रा अंधारा मजूस में लुक्योड़ी ?
बारै सूरज उणी गत दुळकतौ
इळा रौ फेरौ दैय गियौ परौ व्हैला
आपरै घरै।
सुण्यौ के बारै आयौ है बसंत
चूकता रूखड़ा आपौ आपरी
अेकूकी डाळ सूं खेर परी उदासी
नवीं कूपळां रै मिस
पैरली व्हैला कड़पदार पीड़ री पोसाक!
हरख मगरा री टूंक सूं
हेम रै आंगै पिघळ परौ
आसूंवा ज्यूं दुळकग्यौ व्हैला!
काळ री धजा
बेरंग व्हैगी व्हैला फरूकती
अर फेंकड्यां मुसांणा में
झारती व्हैला अगन-राळ
कुण मरैला ?
समिया रौ तौ कणाकलौ मोसर व्हैग्यौ
उणरी पागड़ी खूंटी टिरै !
म्हैं ई गैली
घायल री गत किणी अधघायला नै इज
सुणावण री धत झाल
बैठी हूं निराताळ
आपरी काया रै पिंजर
खुद रा अेकूका घूमड़ा पंपोळती।
सुण्यौ कै रेलां
चौड़ा चिहलां माथै दोड़ण लागगी
जिणसूं कांईं व्है
सेंणा रै बायरियै तौ हाल
किणी डिब्बै बड़ण रौ मतौ नी कर्यौ व्हैला।
मंगळा चौथ आई अर नीसरगी
बाळ-प्रीत री रूह अजतांईं खंडै है
पुस्कर री घाटी में
मुगती रौ मारग लांबौ नी तो ओछौ ई कोनी व्है।
थारी मरोड़ अजताईं बादीला
तण्योड़ी है भरत दाईं
सपनै रै खिंडण सूं डरपती
म्हैं तो आंख ई नी टमकारी अजताई ।
तौ ई थूं
म्हारै सोच रा उजाड़ छापर में
अळगौ ई अळगौ
किणी टिपकी माफक
क्यूं तिरै म्हारी आंख में झांवळौ बण परौ
क्यूं गूंजै म्हारै कान में
आपरी सांय-सांय सागै अस्टपौर
नाक मायली रूवाळी में
क्यूं बैठौ है बण आपरी देह-गंध ?
नीं आवै तौ की कोनी
पण कणैई पतवांणी व्हैती
म्हारी काया सूं बारै पसरती संदवाय।
आसोजी तावडे
चाठ री ज्यूं म्हारा हाड सूं झरता
झरण री ठाडोळाई
कदैई नैठाव सूं झील्यौ व्हैतौ
तौ मिट ज़ातौ थारौ आवगी जूंण रौ थाकेलौ !
इण अक्खै बगत में, कदास
कठैक आडौ आवतौ
संधीणौ म्हारै नेह रौ !
अबै म्हारै निसांस री ताती लूवां
करै कठा लग थारौ खेरौ
अंतरीख री किसी खोखल चापळग्यौ है
इतौ अदीठ
के जठै पूगती लातर जावै म्हारै मन री दीठ।
भाळ के इण फूल्योड़ी सांझ रै चानणै
बादळां री कोर सूं मूंडौ काढै है
अेक-अेक कर
थारी कविता रा हरफ
अर म्हारी आस झरै है टप-टप
मीझर रै उनमान
कठैई की निस्तारौ नी दीसै !
सुळ्योड़ा संजोग रा काठ-कबाड़ में
विजोग रै छतां
पछै आ है इज क्यूं है प्रीत?
आव अेकर के अपां
मिळ-बैठ इणरा खोज काढां
पछै सिरोळा पिछताय परा
अेक-दूजा नै।
अेक-दूजा रै माय सूं देसाटौ देवां
अर अेक-दूजा रै परसेवा सूं
अेक-दूजा री गंध पूंछ लेवां।
ता पछै प्रीत री जात
विछोवा रौ उछब करां !
आपौ-आपरै सपनै री सींव माथै बाड़ करां !