वाखोटै उठ धरती नापै

दूर दिसावर भमतौ रैवै

नासेटू, सपना पूरण

आखी जूंण आथडै-जीवै।

लूण-मिरच कै सूखी रोटी

खाटे-लांगटिये रै सारू

गोळां-डेरां जाय अेकलौ

पूछ बावड़, जीव-जतन कर

फिरतौ रैवै

तालर-तालर

मगरां-मगरां

डिगोड़ी थळियां रै ऊपर

लैय विसासी।

इणनै लागै सबसूं व्हाला

जीव-जिनावर

जिणरै खातर

कितरी रातां जागै

कितरा दिन तिरसौ रैवै।

फाटी पाग

चोळियो फाटौ

गंजी लीर-झीर व्हियौड़ी

धोती फाट्योड़ी इण री

पण आंख्यां में सपना ऊगै

नीं हारै, नी हांफै जीवण

भरतौ रैवै सदा पांवडा।

इण रै हिंवड़ै नी कुटळाई

अटकळबाजी सूं अळगौ

कूड़-कपट नीं नैड़ो इण रै

नैहचो अर विसवास अणूतौ

राख सवायौ

सुख सरसावै

जीवां ज्यूं भौळो रैवै।

इण रौ जीव सदा विकासूं आंधी सूं

अळगौ न्यारौ

नीं है इण रै

सपना में म्हैल माळिया

नीं राखै

बातां रा थथोबा कूड़ा

जैड़ी देखै, वैड़ी भाखै

इण रौ अंतस

धवळ दूध ज्यूं धवळौ-निरमळ

इण रै होठां

मुळकण मीठी मिसरी जिसड़ी

दीठ सबां सूं ऊंडी-ऊंडी।

पाप करम सूं कोसां आगौ

जीयाजूंण नै जीवै-सींवै

भाग खुदी री बातां करतौ

हंसतौ-हंसतौ

जीवै जीवण।

अबखायां रौ इणरौ जीवण

ऊजड़ मारग करै जातरा

पगरखी खाखां में घात्यां

पग उळबाणौ बैतो रैवै

पण इण रै सिर

चिंतावां री छियां कोनी

पोटळियां में माया कोनी

है तो अणहद सुख रा बादळ

झिरमिर करती मोटी छांटां

जिणसूं इण री काया भीजै

जीवण रंगां सूं भर जावै।

स्रोत
  • पोथी : इण धरती ऊजळ आंगण ,
  • सिरजक : महेंद्रसिंह छायण ,
  • प्रकाशक : रॉयल पब्लिकेशन
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