अबार इण वेळा
म्हारै कमरै ‘टेप’ में बाजै छै सुरणाई
बिस्सिमल्ला खां रा पीड़ छतां मुळकता मूंडा री
फूंक सूं
विजोग अर पीड़ री जुगलबंदी में
जिणरी अेकूकी गूंज
म्हारै अंतस री अबोली-अळगी घाटी में
पड़ै-उठै
अर म्हैं जगती नै पांतरतौ
बिसरण लागूं गांव अर गळियां
अठा तांई के
खुद रै आपरै घरै पूगण रा मारग
थारी अणमौजूदगी
तांन रै टप्पां रै आसरै
पसरण लागै
अठै-वठै चारूं दिस
म्हैं अचकचाय सोय करूं आपरी आतमा री
जठै चापळ सकूं निरांत सूं
पण चांणचक पड़ै ठाह
के उण आपरी ठौड़ बदळ लीवी दीसै
निकळी तौ कोनीं देही सूं
पूरी जाच
चळ-विचळ व्हैगी लागै
थारै फींफरा सूं सांस लेवती
डाफाचूक व्हैगी लागै
थारां सूं बारै छै ई कठै, कीं-कांईं
औ अंतरीख थारौ लिलाड़
आ नभगंग थारी वेणी छै
थारी डूंठी री गरज सारतौ वौ ‘ब्लेकहॉल’
अै बादळा
थारै देह री सांवळी-भूरी रूंवळी छै
औ खितंग थारै पग टेकण रौ ओटलौ
काळी जंगी कांठळ छै थारा कांन
जठै पूग सगळी रागां बिसांभौ लेवै
आपरी मुरछनावां सागै
इणसूं पैली के म्हारी इळा ई
बारी आयां समावै थारा ‘ब्लेकहॉल’ में
अेक छोटौसोक परळै माचै
म्हैं, म्हारी गळी, म्हारौ गांव
म्हारौ देस, म्हारौ गिलोब बिलावै
थारै मांय
आपो आपरी मायड़भासावां में डाडतौ
अर म्हारी स्रिस्टि री विधना अपळंग व्हैय
मांडै आडा-डोढा आंक
जिकां रौ कीं अरथ नीं व्है अैड़ी टेम
काळ अजखुद
गोटै व्हैय जावै दड़ी
परळै रा काळिया धेह में
म्हैं ई कर सकूं निरत
अेक के अलेखूं फणां माथै
जे म्हनैं आस व्है थारै मिळण री
म्हारौ कांईं लागै
निरत में हाथ-पग हिलावण में
पण राग, सबद, रव
अर वरणमाळ लोप व्हैता व्है जठै
इळा अर उणरौ आभौ ई
आपरै बचण री आफळ में खळडिखळ व्है
बिस्मिल्ला खां री सुरणाई री वांणी में ई सही
अणूंतौ झिझकतौ सरमीजतौ
पण ऊंचै सुर में उचारणी चावूं तीन सबद
‘थूं म्हारी छै’
थारा सूं बारै कीं कोनी
भलांई म्हारा सुर में
तीनूं लोक
तीनूं काळ
म्हैं अर म्हारी मायड़भासा
म्हारौ गांव अर म्हारी रुतां
लोप व्है जावां।