म्हारै चक सूं

निकळती

नहर री

नानी है-

एक नदी!

नांव सुरसरी

जिणरो पावन जळ

जरीकन में घाल’र

पूजा रै थान में

राखै मा...

इण नहर रो पाणी

रळ्योड़ो है

म्हारै रगत में।

मा मुजब-

बा उबारै पाप सूं

बाबो बतावै-

उबारै भूख सूं।

स्रोत
  • पोथी : चीकणा दिन ,
  • सिरजक : डॉ. मदन गोपाल लढ़ा ,
  • प्रकाशक : विकास प्रकाशन, बीकानेर ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण
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