आभ नै हाल
थिर रेवणो है
खासा ताळ
इणीज विध—
बिना छातरे रे घरां में रवणिया खातर
धरती नै हाल
घूमणो है सूरज रै चौफैर
खासा ताळ
इणीज विध—
मिनख न गतिसील राखगा सारू!
आदमी नै हाल
बहस में अळूझ्यां रेवणो है
खासा ताल
इणीज विध—
कूड अर साच न परखणा वास्ते!
पद पईसै अर सम्मान री
तजवीज जद दिरौ ढकती
वीं जगत आ तकात कर दिखावै
मायड भासा कथै जिण न
वी रै गफ्फी धान र पड जावै।
आज
इतिहासकार आ राजर खरीद गुलाम है
इण खातर
अे इतिहास तो बणैला ई
पण आनै आज
इत्तो 'क तो
मैं ई पूछू
थे ई पूछो—
आ तो बतावो
केड़ोक लागै
जद मायड़ रो
घाघरो सूंघो?