दिन भर रो थाक्योड़ो
भूखो-तिरस्यो मरतो
पिछम रो
पितळायो सूरज
टूट्योड़ै दम सूं
छितिज री छाती पर
थम्म सूं जाय पड़्यो।
प्राण-पांखी,
उड़ि गिया।
आभै री अरथी
काळ रा अंधियारा में,
बाळवा बैठी
तेज रा पूत नै।
तारा
आग रा अंगारा वण
झीणी-झीणी वागती
वायरा री लहर में
धधक उठ्या
रात रो काळो राखोड़ो
च्यारूं दिसा मां
फैल्योड़ो देख'र
जुवान चांद
मूंडो लटकाय'र
डर्योड़ो
अधखुल्योड़ी आंख्यां सूं
बादळां री बारी में सूं
टपकावा लागो
ओस रा आंसू।
हाको सुण'र
जरा सा मिनख
भरबा लागा
कोठा धान रा,
पाणी रै माथै
बेवाड़ै दीदा रूखाळ्या
काळ री चिन्ता मांय
ऊणा नै ठा कोनी कै
उषा री कूख सूं
जनमवा वाळो है
सुकाल रो सूरज
जो
हांकैला आपणी
सोनै री किरणां सूं
धरा नै।
बोवैला
फेरूं जीवन रा बीज
निकळ पड़ैला
पांखेरू
पाछा
आपणै कमठाणै।