साँवरिया रा नैणा सूं मैं, कियां नैण मिलाऊँ जी।

लुक—लुक, छुप—छुप देखूं बांनै देख—देख सरमाऊँ जी।

मुळक-मुळक मुस्काती आँख्याँ मन रै भीतर उतर रैयी।

लालम—लाल दमकमी सूरत, देह रो रूप, बदळ रैयी

रतन—जटित हो आई काया कुण नै कियां दिखाऊँ जी॥

वांरा नैणा रो रूपाळो, रिमझिम रस बरसावै है।

वां रा नैणा रो उजाळो चारूंमेर समावै है।

जगमग-जगमग हुई आत्म समझा कोनी पाऊँ जी॥

साँवरिया रा नैणा सूं मैं कियां नैण मिलाऊँ जी॥

स्रोत
  • पोथी : जागती जोत फरवरी-मार्च ,
  • सिरजक : श्रीमती पूजाश्री ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा साहित्य एवं संस्कृति अकादमी, बीकानेर
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