म्हैं गमाय दियौ

म्हारौ गांव

सोधण री आस

पगां रौ पांणी

टांक दियौ उणियारौ

कांकड़ री खेजड़ी

जूनी

घणी जूनी

जिणरी बात म्हारा दाता कैवता।

झालरै उतरता बिछिया

करता मसखरियां

म्हैं देखतौ

घट्टी रै हत्थै

हरजस रा बोल

सुणतौ रैवतौ आधी नींद मांय।

भांत-भांत रा रूप

निजरां देखती,

लेय दीठ मांय

रातकी नाडी री पीड़

नीसरियौ

पाछौ आवण रौ कौल कर।

दबग्या बोल

मिसरी रै किरचां हेटै

बतूळियौ ढबग्यौ

ऊंची भींतां रै पासै

बध-बध मुळकतौ रह्यौ।

गोवै सूं निकळी नै गमगी

दीठ

म्हारी दीठ।

स्रोत
  • पोथी : जातरा अर पड़ाव ,
  • सिरजक : अर्जुनदेव चारण ,
  • संपादक : नंद भारद्वाज ,
  • प्रकाशक : साहित्य अकादेमी ,
  • संस्करण : प्रथम
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