ओळूं आवै म्हनै म्हारै पुराणियां घर री

बै छोटा-छोटा ओरा अर बा कच्चोड़ी रसोई

बो बारलो मेहमानां रौ कमरो

अर कच्चे-पक्के आंगणै री कोर

माटी रौ चूल्हो अर घट्टी रो फेर

डोवे री राबड़ी रै सागै कांदो अर कैर

दादा रो ओरो, बीं पर लाग्योड़ौ ताळौ

ऊपर आळै में मेल्योड़ी उणरी कूंची

ताऊजी रो ओरो, जिको कम ही देख्योड़ो खुलो

मैल्योड़ो उणमें समान, जाणै पीतळ री चर्‌यां री दुकान

बा पक्कोड़ी रसोई, जिणमें काकीजी री अलमारी

ताईजी रौ बेड, लौह री जाळी, खनै कदै घट्टी भी चलाई,

बै आंगणै रां छोटोड़ा आळा, जिणमें फंस-फंस'र गायोड़ा गीत

ओळूं आवै बां सगळी बातां री, कोनी अब बै ठंडी-ठंडी रातां

आज-बी सागण जग्यां बणियोड़ा, पक्का-पक्का कमरा

बड़ा-बड़ा हॉल, पाकी चौक अर फूटरां बारणा

पण म्हनैं तो चौखो लागै, बो सीलां आळौ ऊंचो मोड़ो

बो म्हारौं पैलां वाळौ पुराणियौ घर

बडोड़ी पक्योड़ी चौकी पछै छोटोड़ी कच्चोड़ी चौकी,

अर आगली खुली बड़ी बाखल, बो खगोल आलौ खेलड़ो

अर बोरड़ी रा मीठा बोर, कच्चोड़ो पळींडो

अर लारलो हारौ कच्चो-पक्को आंगणो

उणरा निकळ्योड़ा काकड़ा

जग्यां-जग्यां नीप्योड़ौ गारौ,

होली-दीयाळी धोळी माटी रां मांड़णां

सगळां रै सागै बैठ जीमणों, रात रै दूध रौ मिरियो

माँ रौ लाड़-कोड अर बूढ़ा-बडेरां री बातं

याद आवै घणां, पण आज कठै है बे पुरानियां ठाठ!!

स्रोत
  • पोथी : कवि रै हाथां चुणियोड़ी ,
  • सिरजक : मृदुला राजपुरोहित ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी
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