थारी याद री

आंसूड़ा भरी बादळी

म्हारै जीवण-आभै

छाई ही-

उण री बून्द-बून्द सूं

हूँ म्हारी

कविता रचाई ही!

उण में थारी

टीस ही-दुख हो-तड़प ही

आंसू हा, अगन ही-तिरस ही,

उण में थारी

मुळक ही-हुळस ही

मिठास हो-मैन्दी ही-

उण में

म्हारो कीं नीं हो

जो हो सो थारो हो

थारी याद-

थारी आग

थारी जाग

थारी राग

बस

कविता जलमगी।

स्रोत
  • पोथी : कवि रै हाथां चुनियोड़ी ,
  • सिरजक : लक्ष्मीनारायण रंगा
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