आंख्यां रै नैड़ी

ल्यायोड़ी चीज

कदैई

साफ नीं दीसै

अर उणसूं

जीव अमूझ जावै

थोड़ी देर में

भारी होय जावै

ऊपरली आंख रा

मोटोड़ा भंवारा

सही कैवै

आखो जगत

दूर जायां

चीजां री हुवै

असल पिछाण।

स्रोत
  • पोथी : ऊरमा रा अैनांण ,
  • सिरजक : आनंद पुरोहित ‘मस्ताना’ ,
  • संपादक : हरीश बी. शर्मा ,
  • प्रकाशक : साहित्य अकादेमी, नई दिल्ली ,
  • संस्करण : प्रथम
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