अर, ब्रात्स्की रोसनी घर रै तळै ऊभे नैं;
मायकोव्हस्की बीं घड़ी चेतै आयो,
जाणै बो,
कड़क आडां आळो,
मोटी आंख्यां रो धणी
आप री जोरावर सूरत में अवतर्यो हो।
ब्रात्स्क ज्यूं बो चमकतो
जुगां रा सिखरां माथै
थारा माथां सूं घणो ऊंचो,
भणियोड़ा ढेरां,
कवितां री जूणां री नान्ही मसीनां माथै,
कड़कतो
कूड़ री गूगळी आंच माथै
भीमकाय,
आंटीलो,
बीं मोटै बांध जिसो,
बो ऊभो है पाधरो,
एक भारी भरकम,
उफणतो,
बोल्सेविक-माथै आळो मिनख,
आप री सीट्यां सी गाज सागै
सुधारतो
बो एक जगत हो।
बीं कानी
जगत रो सरबस झुकग्यो।
फकत, पीड़ अर दुख सूं रिसतो,
जिको कईं हूं सोचतो,
पण मायकोव्हस्की जीवतो
सन् सैंतीस में, हूं नईं सोच सकूं।
कईं हुयो हुवतो,
जे बो तमंचो
चूक जावतो?
कईं जे बो जीवतो जित्तै बींनैं जीवणो हुवतो?
कईं बो निंव जावतो?
सावचेत हुय जावतो?
दिखण-मारगी?
नींतर सरणां पड़तो
बीं सगळी रै जिण सूं सूग ही?
या हुय सकै, बो मनमार्यां पसवाड़ै ऊभ जातो
दांत भींच्यां,
फेर अडोळ राखीजतो,
जद रात नैं कठैई काळी बस्त्यां में
बै बोल्सेविकां नैं गोळी मारण नैं ले जाता?
मनैं ईंरो भरोसो नईं!
बांरै ऊपरां
जिकां री सगळी सरम लुटगी,
बीं गोळी नैं अबै अंत तईं मत छूटण दो।
गोळी मारतां, आपरै ई कईं बीं म्हांनैं एक नमूनो दियो?
जुगां रै माथै
बो अवतारी तमंचो
एकर फेर गोळी दागै, गूंजती सर्राट सागै।
बो तमचो,
सिधीज्योड़ै भरोसै रो,
बीत्योड़ै बखत मांय सूं,
जाणै फकत दो कदम,
दागै
बोकापणै माथै,
आडम्बर,
नीचता,
बैर्यां में जिकी असली
नकली नईं।
बो दरसावै जड़ता री कूड़ रै खिलाफ
अर दगाबाजां,
कान्ती रै करम सूं ऊभो है जठै बो ऊभो हुयो।
बीं बन्दूक में मायकोव्हस्की म्हारै खातर
आपरी गोळ्यां राखी
जिकी म्हांनैं चईजै कै दागो,
अर दागो,
अर दागो
अर दागो।