म्हारा लिखिया आंखर बांच्या मत रोजे।

नैणां उफण्यां जळ सूं मूंडो मत धोजे।

म्हारी जामण, म्हारा सपना थारी नींद उडावै।

मन मैं म्हारी ओळू बांध्यां मत सोजे।

ढळती रात बरफ गळती

धरती की काया जळती

ऊपर उठतो धूंधाड़ो

नीचै गोळ्यां बळबळती।

पाछै की बाधा काटी

आगै पण पड़गी टाटी

सेळो दरिया को पाणी

ऊंडी डूंगर की घाटी।

सेळी आंधी आंख्यां बांध्यां बरफ तळै सो जावै,

सुण सुण अतनी बातां धीरज मत खोजे।

चंदा सूरज का गोळा

जाणै क्यूं बणग्या भोळा

दारू की गोद्यां सोवै

बरफ ढंक्या परबत धोळा।

रातां उठतो उजियाळो

धूंधाड़ा सूं दन काळो

सांसां सोयो सन्नाटो

आंख्या मैं जाग्यो जाळो।

सरवर तीरां सारस बोलै जद धड़कण धड़कावै,

कर-कर म्हारी ओळूं धड़कण मत धोजे।

पैलां का बाड़ा डांकै

लड़बा की मनसा राखै

मरग्या मनख सड़ी काया

कुण नै राड मचाई यूं

गोळी म्हैं चलाई क्यूं

गोळ्यां सूं मूंडो भरद्यूं

मनख्यां का भूखां को म्हं।

थारो जायो जनम जीवतां आंचळ-दूध लजावै,

थारा मन मैं बात कदी यूं मत सोचे।

स्रोत
  • पोथी : सरवर, सूरज अर संझ्या ,
  • सिरजक : प्रेमजी ‘प्रेम’ ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा साहित्य संगम अकादमी ,
  • संस्करण : Pratham
जुड़्योड़ा विसै