पसवाड़ो मत फेर निंदाळू, जागण री बेळा आई
दिन ऊग्यो चिड़कोली बोली, आभै में लाली छाई
माटी मुळकी, बीज पसीज्या, कूंपळ पर जोबन छायो
फूल पातड़ी बिछिया बणगी, धरती रो मन अंगड़ायो
थोड़ी-सी जे आंख मांजली, निजर घणो ही आवैलो
जे देखी अणदेखी कर दी, बिना मौत मर जावैलो
जण जण रै मन बस्यो चानणो, नैणां में रौनक आई
दिन ऊग्यो चिड़कोली बोली, आभै में लाली छाई
मिणत पसीनो पूंछण लागी, ठाला बात बणावै रे
ठगी अंधेरे में जद बैठै, कड़क बीजळी आवै रे
आज प्राण री खेती निपजै, करम जुगत दरसावै है
बणत मांडली नई योजना, पछलो आगे आवै है
घणी उतावळ पग कद मांडै, सीळी धरती रह धाई
पसवाड़ो मत फेर निंदाळू, जागण री बेळा आई
घेर घुमेर बादळी आई, बूंद घूघरी-सी लागै
स्वाद मजूरी सुस्ती खारी, नींद दरूजै पर जागै
दूध बाळग्यो, छाछ, फुंकले, दही जमायां कद जमसी
आग बरसगी, घी छिड़कगी, नई क्रांति कीकर थमसी
छमको लाग्यो, लपट नीसरी, छाटै में सोरम आई
दिन ऊग्यो चिड़कोली बोली, आभै में लाली छाई
चुगटी - चुगटी चून बखेरै, दूणो चूसै बदलै में
थोड़ो करै घणो दरसावै, सिरळ - भिरळ है सगळै में
मटका करती, डैरा भरती, आंख मिनख नैं खावै है
धीरज धरलै चाह बावळी, बिसवासी मन गावै है
पग में पड़ी बेड़ियां कटगी, पैंजणियां सुर में आई
दिन ऊग्यो चिड़कोली बोली, आभै में लाली छाई