कैर कुमटिया काचरी, बैर जाळ खोखाह

पेर धरणी फूटरी, ब्रह्मा कैवै वाह

कंवळी खै करुणामयी, धवळी नवली धूड़

धोरां री सगळी धरा, चमकै घणी चरूड़

अैरावत ऊभो अठै, निरखै धर कैंकाण

सुरपत घर नै छोडीयो, राखी थळवट ठाण

रम्भा वर्‌चा उर्वशी, अरुणा वरुणा आय

रमै अहरसनिस धोरियै, गंधर्‌व बैठा गाय

सह नंदी मूषक मयूर, रमै धोरै गा गीत

वरसाळो आयो वळै, पसराई धर प्रीत

अंतस रस जस ऊजळो, टपकै आंगण तीर

हंस-हंस कर हेमा हसै, भवा हरै सब भीर

पारबती कोमल पुहुप, कंचन देह कैलास

इण कारण आवै नहीं, ऊजळ धर आवास

पीर रामदे पूगिया, धीश द्वारका रूप

धोरै नै किनी धवळ, ऊजळ रूप अनूप

आहा! धरणी ऊजळी, नर-नारी नवलेस

रमै जठै रळियावणा, माता गौर महेस

काशी जाय करवत ले, मांगै वर मनचींत

प्रगटै थळ परमेसरा, जग लेवण नै जीत।

स्रोत
  • पोथी : ऊरमा रा अैनांण ,
  • सिरजक : कृष्णपाल सिंह राखी ,
  • संपादक : हरीश बी. शर्मा ,
  • प्रकाशक : साहित्य अकादेमी, नई दिल्ली ,
  • संस्करण : प्रथम
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