मिनख बोल्यो रे—“फोन!
थने भी यार झक कोनी
घड़ी-घड़ी काया ही कर न्हाके
अर् लोग है क दूरा सूं
बातां घणी’ज फांके
बोलता-सुणता
मूंडो थक जावे
कान पक जावे
कदी’क तो
छानो रह्या कर!
फोन रीस खाय’र
टर्रायो
पडूत्तर म घनघनायो
बोल्यो—“वा रे यार!
कान भी थांका
मूंडा भी थांका
मूं तो कोरो तार हूं तार
पण ई तार री धार सूं
मन रा तार नी जुड़े
जदैं ऐड़ी सोच बणे है
नीतर
घणां की तो
घटांऽऽऽ... तक गैरी छणे है...।