म्हारे खेत रै धौरे मण्डयौड़े

डूंचियै माथै

कफनी पीड़्यां ऊभो-

कार्ल मार्क्स जरड़ी भींचै

जिकी सरकार सगळां री हुवै

ज़मीन वीं सरकार री हुयगी

पण

बाणियां नै देवण सारु।

स्रोत
  • सिरजक : शिव बोधि ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोडी़
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