ठेठ का घराँ सैं तो म्हां कै जो-ज्वार-चणाँ सिकता आया,

सिक-सिक'र भूँगड़ा-मूम्फळयाँ, परमल-फूल्या बिकता आया।

भगवान भाग बाँट्यो जीं दिन बड़काँ कै पल्लै पड़्योभाड़—

जीं कन्नै खूँटै ठोक्या-सा जनम्याँ जिद सैं टिकता आया।

मोट्यार सेकता हीऽर लुगायाँ मरगी देताँ हुयाँ ताव।

मैं गयो जीतबा नै चुणाव॥

म्हे भी म्हाँ की जिंदगाणी नै ऊँ हीं साँचा मैं ढाळी छी,

मा-बाप मर्‌या जिद म्हे वाँ सैं या ही जागीर सँम्हाळी छी।

ज्यो आग भाड़ मैं सिलगै छी, वाही सिलगै छी पेटाँ मैं,

वाँ दोन्याँ मैं हँसताँ-हँसताँ म्हे म्हाँकी काया बाळी छी।

ऊँका बट मैं तो फूस और म्हारा मैं आयो छो कळाव।

मैं गयो जीतबा नै चुणाव‌‌‌॥

हो भलो बापड़ा गाँधी को, ज्यो जग मैं उथल-पुथल कर दी,

म्हाँ-सिरका जनम-दुख्याराँ का घर मैं सुख अर सम्पत भर दी।

मैं ऊँको भासण सुणताँईं बेईमानी पर कमर बाँध,

सब धरम-करम अर लाज-सरम ले जा'र ताक माळै धर दी।

अब लाग गयो म्हारा मन मैं बस माल कमाबा को उछाव।

मैं गयो जीतबा नै चुणाव॥

मैं ल्या लुहार नै छेद चालणा का चोड़ा करवा लीना,

काँकरा गार का सोर भाड़ कै माँईंनै भरवा लीना।

छण-छण'र नाज नींचै पड़तो, बध जातो बोझ काँकराँ को,

मण गैल सेर भर काटा अर धरमादा का धरवा लीना।

ज्यो ल्यातो सेर सिकाबा, वो ओठा ले जातो तीन पाव।

मैं गयो जीतबा नै चुणाव॥

ईं तरैं एकला म्हाँ को ही भाग्यो दळहर दुम दबा'र,

आड़ोस्याँ-पाड़ोस्याँ तक कै जाबा लगगी चीजां उधार।

ज्यो कोई भूल्यो-भटक्यो भी म्हाँका घर ओड़ी निकळयो,

ऊँ कै माळै मनुवाराँ को में बरस पड़्यो मूसळाधार।

मूँठी-दो-मूँठी चाब्याँ बिन कद हुयो बापड़ाँ को बचाव?

मैं गयो जीतबा नै चुणाव॥

यूँ कितरा ही ठाला-भूला, ज्यो भटकै छा बेरोजगार,

भर पेट भूँगड़ा-धाण्याँ सैं बण बैठ्या सब साहित्यकार।

धाण्याँ पर खाण्याँ लिखी गई अर मूम्फळयाँ पर महाकाव्य,

परमल-फूल्याँ पर उपन्यास, अभिव्यक्त हुया अदभुत विचार।

वाँ हीं की बाणी मैं सुणल्यो ज्यो-ज्यो वै परगट कर्‌या भाव।

मैं गयो जीतबा नै चुणाव॥

ये गुड़धाण्याँ ही गणपत की दिन-दूणी दूँद फुलावै छै,

ये फूल्या ही होळयाँ'र दिवाळ्यां नै हर बरस बुलावै छै,

ये खील-मखाणाँ होटाँ कै अड़ताँ ही पैली पाप्याँ की,

आगली-पाछली सात-सात पीड़्याँ भव सैं तिर जावै छै।

ये चणाँ, चकाणाँ खोल आँधळाँ का, कोढ़्याँ का भरै घाव।

मैं गयो जीतबा नै चुणाव॥

यूँ बिन फैलायाँ फैल गया आधी दुनियाँ मैं समञ्चार,

इन्डस्ट्री का इन्स्पैटरजी आगा अफसर नै ले'र लार

दो मूठी चणाँ चबातां हीं, मिलगी मोटी-सी रकम मनै,

जीं सैं मैं म्हारा धन्धा मैं कर लीनू मन चाह्यो सुधार।

ज्यो-ज्यो देगा छा इञ्जनियर मूं नै अण माँग्या ही सुझाव।

मैं गयो जीतबा नै चुणाव॥

अब फूस झोंकबो छोड़ भाड मैं बिजळी फिट करवा लीनी,

सिंकबा-छणबा नै भी आटोमेटिक कळ ही धरवा लीनी।

ओराँ को नाज सेकताँ हीं ज्यो कमर दोलड़ा होगी छी,

ऊँनै सूधी करबा नै अब गिद्दी मसन्द भरवा लीनी।

टैलीफोनाँ पर तै करबा लगगो बजार को भाव-न्याव।

मैं गयो जीतबा नै चुणाव॥

ज्यो माल टाट की बोर्‌याँ मैं बिकबा नै जावै छो पैल्याँ,

ऊँसैं अब भरबा लागगी रंगीन प्लास्टिक की थैल्याँ।

ज्याँकी किरपा सैं भारत नै आजादी मिली मिलावट की,

म्हे अस्या नींच कद का ज्यो वाँका गुण-ईसान मान नै ल्याँ?

छपवा लीना सब थैल्याँ पर वाँकी तसबीराँ अर सुभाव।

मैं गयो जीतबा नै चुणाव‌॥

नमकीन चणाँ पर नेताजी ऊबा “जै हिन्द” उचारै छा,

मींठां का पैकिट पर बैठ्या बा-बापू फाँका मारै छा।

धाणी पर झाँसी की राणी अँगरेजाँ नै ललकारै छी,

सरदार पटेल परमलाँ पर नरपाळाँ नै पुचकारै छा।

अर मूम्फळयाँ पर चँदसेखर मूँछयाँ माळै दे रह्या ताव।

मैं गयो जीतबा नै चुणाव॥

हाँ कै छी ट्रेड-मार्क सैं खुद भारत मा म्हारी जीप कार,

सिरकारी रजिस्टर्ड नम्बर च्यार सो बीस ए. एम. आर,

दस नम्बर टैलीफोन का'र तार को पतो “ईमानदार,”

छपवा ली मोटा आँकाँ मैं “धोखाबाजाँ सैं होसियार!”

किल्लाँ मैं छाप्यो तोल, नया पीसाँ मैं छाप्यो मोल-भाव।

मैं गयो जीतबा नै चुणाव॥

पागलखानू, संटरल जैळ, फोजी गोदामऽर अस्पताळ,

याँमैं मैं म्हारै आगै कद कोई की गळबा दी दाळ?

मंजूरी म्हारै नाँव टैन्डर दियाँ बिना हो जावै छी,

मैं ताव उस्यो ही दे-दे छो जण्डै बाजै छी जसी भाळ।

अफसर नै चोखो माल चखा, खोटा को कर दे छो भराव।

मैं गयो जोतबा नै चुणाव॥13॥

ख्रुस्चेव-आइजन होवर नै मैं म्हारी फरम दिखाई छी,

भूँगड़ा सेकबा की विद्या समझा-समझा'र सिखाई छी।

फूल्याँ की प्लेट फाँकताँ की फोटू ही क्यूँ? फिलमाँ उतरा,

जाताँ-जाताँ वाँकै हाथाँ मैं सुभ-सम्मत्याँ लिखाई छी।

यूँ रूस और अमरीका तक मैं फैल गयो म्हारो प्रभाव।

मैं गयो जीतबा नै चुणाव॥

नेरूजी चाही रूस गया, जर्मन, जापान'क अमरीका,

भेजबो साथ कोनै भूल्यो मैं मणाँ-चणाँ मीठा-फीका।

या भारत की सोगात असल चाचजी कै हाथाँ चाख'र,

परदेसी बाळक भूल गया बिस्कुट अर क्रीमरोल घी का।

आडर पर आडर आवै छा, पण छो भेजबा को सराव।

मैं गयो जीतबा नै चुणाब॥

मैं जाणू कोनै राजनीत, पण म्हारै कन्नै छी माया,

भारत मैं कसी पारटी छै? जीं पर म्हारी पड़ी छाया?

ज्यो मनै चुणाव टिकट दीनू, भासण भी खुद ही लिख ल्याया

हर छोरावा मैं सभा कर'र म्हारा गुण-गान घणाँ गाया।

जिद मैं भी उतर अखाड़ा मैं लग गयो दिखाबा पेच-दाव।

मैं गयो जीतबा नै चुणाव॥

मैं खी'क, जीत जाबा द्यो बस, धरती नै सुरग बणा द्यूँलो,

आमर का तारा तोड़ ल्या'र धरती माळै चिमका द्यूँलो।

उत्तर सैं उठा हिंवाळा नै दिक्खण का सागर मैं बिछा'र,

दिन-दिन बढती जन-संख्या का बसबा नै जगाँ बता द्यूँलो।

अर सेखाटी की माटी का टीबाँ मैं द्यूँलो तिरा नाव।

मैं गयो जीतबा नै चुणाव॥

जाणै हाल मत को मतलब या भोळी जनता भारत की,

बैका द्यो जैयाँ बैक जाय, सुणताँ हीं बात सुवारथ की।

मैं भी मतदाताँ कै ताँईं प्यावाँ लगवा दी सरबत की,

अर दो-दो मूठी चणा चबा चूकती कर'र कोमत मत की।

करवा दीनू कंठां चुणाव को चिन्ह “चालणू अर कळाव।“

मैं गयो जीतबा नै चुणाव॥

म्हारै ओड़ी छा ज्यांनै तो मैं फाँकां चणां चबाया छा,

अर ज्यो विरोध मैं छा ज्यांनै मैं नांकाँ चणां चबाया छा।

अब म्हे जनता का धणी, बणी या म्हाँकी बैलाँ की जोड़ी।

जच जावै जय्याँ हीं जोताँ अर हाँकाँ, चणां चबाया छा।

अब या ही तो हळ खींचैली, या ही गाडी अर चड़स-लाव।

मैं गयो जीतबा नै चुणाव॥

स्रोत
  • पोथी : चबड़का ,
  • सिरजक : बुद्धिप्रकाश पारीक ,
  • प्रकाशक : प्रमोद प्रकाशन मन्दिर, जयपुर
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