लोकराज
तूँ गाज्यो घणो
पण बरस्यो कोनी
जद-कद बरस्यो लाय बरसी
ओळा बरस्या
रोळा बरस्या
अण गिणती रा बोळा बरस्या।
लाम्बै-लाम्बै बाँसां पर
झांसा छरड़ा बाँध’र
ऊंचै स्यूं ऊंचै किनखै नै
ऊपर को ऊपर ही
किणियाँ में उळझाणियाँ
ओछै-मोछै
बावनिये बचकानिये रै
तो तणी ही हाथ को आण दीनी
बागां रा फूल फूसका बणग्या
काची कूंपळ, अध खिली कळी
कोई तरसै पात नै अर कोई तरसै फूल नै।