अलोप हुयगो वो उजास

जिको निजरां सामी

सोनै रो डूंगर बण

मदमावतो समदर-सो उफण्यो

आंतड़ियां री जबान रा टणका सुर।

रगत सूं बैवता परनाळा में

आखी रात अर दिन गिणता

वा घड़ी वा पुळ...!

धरती रो हेत

जियाजूण रो दुखड़ो

अर पिंजरे में तड़फतै

पंछी री पांख्यां रो बागीपणो,

कद बदलैला हाल-हुवाल

कद चिमकती बिजळी रै गळे में

पुसपां रै रस सू उमटैली काळी कांठळ

बूढे पीपळ रै हेटै सोचतां-थकां

फीका-सा लागण लाग्या उमर रा ढळता बरस

पण गरब अर गुमान सूं जूझणो कदै

थाकल नी मैसूस हुयो दीठाव रा ताता-ठंडा पौर

उगतै सुरजी अर आथमतै चांद रै साथै

मांडता रैया नुवै जुग रो गरबीलो इतियास

आज रेत ठंडी बूक्या थक्योड़ा

सणपां चालता पगां नै खोरता

तणीज्योड़ा हाथ

चबूतरां माथै बैठ

बजावता रैया ढोल

बांदरवारां सूं सजावता रैया

आजादी रै बरसगांठ रा ढळीजता परब

टसकती जियाजूण नै भरम रै

माळा-पन्ना सूं बणावता रैया गणगोर

सबंद सगळा थोथै चणै रै उनमान

कानां में लगावता रैया चटीड़ा

अेक इतियास सिरज्यो

अेक तड़फ सूं अेक संकळप सूं

रगत री स्याही सूं लिख्योड़ो अमिट पण

वो इतियास जिण रो अैसास अजै तांई नी

कुण कैवैलो सांच?

कुण देवैलो पडूतर?

समेट इतियास री पुड़ता नै सावळ!

अर बता कठै लुक्योड़ो है

डबरै में वो च्यानणो।

स्रोत
  • पोथी : जागती जोत काव्यांक, अंक - 4 जुलाई 1998 ,
  • सिरजक : गोरधनसिंह शेखावत ,
  • संपादक : भगवतीलाल व्यास ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी
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