तूं तो छोरा सरल घणो है।

दुनिया रे मन गरल घणो है।

पत्थर कर हिवड़े ने सतिया।

थारो हिवड़ो तरल घणो है॥

दिखती दुनियां भोळी है।

पण असल आग री गोळी है।

किल्डै रा गुण लेजे सतिया।

मत बणजे चिड़िया भोळी है॥

अब अपणा नहीं सहावे है।

भायां में भ्रात मावे है।

लोकलाज भी मिटगी सतिया।

सब स्वारथ में बतळवै है॥

बोली में मधु रास नहीं है।

टेम किणी रे पास नहीं है।

बुरै बखत बुलाजै सतिया।

लाख यार पण आस नहीं है॥

कळजुग री छाया है।

इण कारण नर भरमाया है।

इश्कवफा अब झूठा सतिया।

सब तो मोह माया है॥

अब जो साचो प्यार जोवै है।

मूरख बे नर नार होवे है।

मूरख पण मत करजे सतिया।

सब खोटा यार होवे है॥

ईमानी रो नांम नहीं है।

बिन रिश्वत रे कांम नहीं है।

राम जी री धर पे सतिया।

मिनखां मांही राम नहीं है॥

खाखी खंख खवाय मढ़ी है।

कळकोट्यां रे आय बढ़ी है।

लोकतंत्र कुरळावै सतिया।

सत्ता मद धपाय चढ़ी है॥

केई बिकग्या कीं बिके है।

बुगला हंस रो भाग लिखे है।

डेमोक्रेट सब झूठा सतिया।

सत्तावां रो डोळ दिखे है॥

नेता बण बै मौज करे है।

आगे लारे फौज फिरे है।

फैल हु नेतो बणजे सतिया।

पढ़बा को क्युं सोच करे है॥

रिपया पावण आप मरै है।

खोटा धंधा धाप करे है।

काळो मत ना खाजे सतिया।

पुण्याई साफ करे है॥

सरकारां अणंजांण घणी है।

धनवानां तांण बणी है।

गरीब झुंपड़ी कूकै सतिया।

आंरो तो बस राम धणी है॥

स्रोत
  • सिरजक : सत्येन्द्र सिंह चारण झोरड़ा ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी
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