(अेक)

दिन आंथ्यां घर लौटबो
कतनो सुखद होवै छै
संदी परकत लौट री होवै छै
आपणा-आपणा घर
बळद, करसो, चिड़कल्यां, बायरो
अर दुख।

(दो)

म्हैं लौटूं तो अस्यां लौटूं
जस्यां लौटै छै ढळती बाती में जीव
अर परदेस सूं आया बेटा नै देख’र
मायड़ की आंख्यां में आंसू।

स्रोत
  • पोथी : ऊरमा रा अैनांण ,
  • सिरजक : किशन ‘प्रणय’ ,
  • संपादक : हरीश बी. शर्मा ,
  • प्रकाशक : साहित्य अकादेमी, नई दिल्ली ,
  • संस्करण : प्रथम
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