बा आसी

पण आंधी री पधेड़ियाँ चढ़’र आसी

क्यूं बा है पाँगळी!

सगळा उड़ीकै उणनै

आभै माँय नी,

उठ रैया है गोट

हिरदां माँय!

उथळ-पुथळ माचगी

लोग उठावै लाग्या

राज-धरम उपराँ

आँगळी!

स्रोत
  • पोथी : कूख-पड़यै री पीड़ ,
  • सिरजक : किशोर कल्पनाकान्त ,
  • प्रकाशक : कल्पना लोक प्रकाशन
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