बादळ पाणी नै रोवैला

बाड़ खेत नै खावैली

किरसो रोंवतो रैसी जद

जनता कै सिर खावैली।

जद बाढ़ आवैली आँसू री

सगळां डूबता जावांला

हिन्दू-मुस्लिम करनै आपां

कुणसा देव मनावाला।

फूट पड़ैली भायां मैं तो

घर मैं भींत खिंचा दयैला

दो कौड़ी रा माणस आय'नै

नाकां चिणा चबा दयैला।

जद अन्न देवता है थारो

तो किरसो पुजारी होणो है

मालक थारा बण बैठ्या बै

सगळो इण बात रो रोणो है।

लड़नो कोनी आपां नै

आपस मैं बात बणाणी है

राजनीति गोबर सूं माड़ी

बात सदियां सूं पुराणी है।

स्रोत
  • पोथी : कवि रै हाथां चुणियोड़ी ,
  • सिरजक : राजेश कुमार स्वामी ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी
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