अड़वा री रुखाळी में

आजादी रा धणी बिना खेत

वाह रै म्हारा पिरजातंतर!

उमर रा दस बसन्त

कटका काड ताई मनग्या

अजेस भी काम दिरावू दफ्तर माथै

‘मायनै आवण री मनाई’

लिख मेल्यो है।

दिन रा कान में

बीड़ी रो कुटको

लिलामी रा गुवाड़ में बैठी

उघाड़ी रातां

आवै—

उदासी सूं गैर खेलां।

जेबां में होटल री

उघाड़ी जांघां रा सुपनां

जिंदगी ओळखाण बिहूण गांव में

उधार दारु रो ठैको बूजै है।

बूफणेड़ा अतीत नै

कुरड़ी पर न्हारवो

मैं तो अल्ट्रा माडर्न हूं

सदाभार खोद खोद’र

थोर उगास्यूं।

उदासी बरसता आभा तळै

म्हारै मन रै हरख रै

दायजा रो दिखावो कठे करूं।

जिंदगी री जातरा

खण सूं मेज, मेज सूं खण

मैं ताळा में जड़ेड़ी

जेज रा संगीन केस री

जरुरी फाइल हूं।

मोकाण आयेड़ा सुपना

गोखां पर उदासी रा सांथ्या मांडै

सूण देखतां तो

आगम री जातरा सळी होसी।

खाबा नै भचभेड़ी

फाकबा नै धूळ

थे क्यूं मनहींणां

थे क्यूं उदास?

मैं थारो गुण कियां भूलूं

म्हारा देस!

किण आखरां में लिखूं

थारी कीरत रा गीत

तू दीनी है मनै

दोय मूंगी जिनस—

एक साव नागी रात

नै निरणा बासी दिन

स्रोत
  • पोथी : अंत बिहूण जातरा ,
  • सिरजक : रामस्वरूप परेस ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा साहित्य एवं संस्कृति अकादमी ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण
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