(अेक)
बाबो
बाजरी बीजण गया
मां ले'र गई भातो।
म्हैं
कविता लिखण बैठ्यो हूं।
(दोय)
अेक तिरस्यो मिनख
ठंडां री दुकान करै।
अेक भूखो मिनख
जळेबी बेचै।
अेक घरबायरो आदमी
हेली चिणै।
आ तो कोई अचंभावाळी बात कोनी
पण
अेक चापलूस मिनख
कविता लिखै!
(तीन)
गळी री नाळी में
तिरतो बगै
अेक तिणकलो।
वीं माथै
अबार ई
अेक मकोड़ो
आंटी लगा'र चढ्यो है
अर सकून साथै
हाथां सूं पूंछ्यो है मूं।
हाल
जीवण-मरण रो
जुध होयो है अठै
जकै में
जीवण जीत्यो है।
म्हनैं लाग्यो
गळी री नाळी में।
तिरती बगै अेक
सांवठी कविता।
(च्यार)
वै गोडै घड़ी नै
कविता कैवै
म्हैं
मोढे ढोयेड़ी नैं।