जुगां सूं घूंवो पीवतै लोगां री
अमूजती सांसां
चौफेर अेक चुप
नित देखूं, सुणूं, बांचूं म्हैं
आज अठै
तो काल बठै
कळीज्योड़ा खीरा
खोलण लाग्या है आंख
अबै म्हनै
बारखड़ी रै बाड़ै सूं बारै
आवणौ ई पड़सी
म्हारा बेली उडीकै म्हनैं
खुली सड़कां माथै
भोर लावण खातर टुर् या है बै
कविता सूं क्रांति कांनी जावै आ सड़क
इण सड़क माथै
आज ऊभा है म्हारा बेली
बांरै साथै हूं म्हूं
म्हारै साथै है बै।