म्हारै कानां मांय

आवाज है

म्हारी नीं

राजनीति री आवाज है

म्हारै कानां मांय।

बेली!

आवाज अेक ध्वनि है सबदमिळी

पण इण आवाज मांय

सबदां रो अपमान है, मान नीं

राजनीति, प्रजातांत्र रो अपमान है

म्हारै कानां रै भीतर

अपमान भरग्यो

अर म्हैं भरग्यो हूं

अपमान सूं।

प्रजातंत्र सम्मानित नीं हुयो

राजनीतिक अपराध बणग्यो

राजनीतिक अमिनखां सारू

खाबा, पीबा, हवाई जहाजां में

उडबा रो साधन बणग्यो

प्रजातंत्र रै बूढापै मांय

कील ठोक दीनी है

अै मिनख।

मिनख नैं कांई मिल्यो

प्रजातंत्र लेय

लेव घर री भीतां रो उपाड़ लियो

बोलो बेली!

जमीन नैं कांई मिल्यो

धरती नैं कांई मिल्यो?

स्रोत
  • पोथी : राजस्थली ,
  • सिरजक : बी. एल. माली ‘अशांत’ ,
  • संपादक : श्याम महर्षि ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी साहित्य-संस्कृति पीठ
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