अेक-अेक आखर चुगतौ
सबद-दर-सबद जगै भरतौ
जिंदगानी रा केई विसयां नै
मान-मोल देवतौ कंपोजिटर
सीनै मांय दरदीलौ तणाव उठण तांई
लगौलग फेंकतौ रैवै हाथ।
‘स्वास्थ्य सारू नुकसाणदाई’ व्हेणै रौ
नीं रैवै कोई अरथ
बरसां सीसै में रेळ-पेळ व्हैती
आंगळियां सारू।
रगत रै पांण आखर चुगतां
बाहुड़ौ अधर व्हैजा जठै तांई री
दौड़ दौड़तौ औ
कांई गुन्हौ कियौ के सिंझ्या तांई
फगत रोटी रौ सरतण व्हियौ
साग बाकी रैयगौ।
आखर-आखर भरीजती ‘स्टिक’
स्टिक दर स्टिक भरीजती ‘गैली’ रे
समचै भरीजती तिजोरी
मालिक री
छेहली बूंद तांई निचोवती हरकत
अर ‘मैटर कम है’ रौ
आदताना औळभौ झेलतां
गाळदी उमर
पसघोड़ी परवार संवेट्यां
सुकड़ीज्योडौ घर
जिण हेटै चिगदीजण रौ डर
छुडाय दै आछां-आछां रा पग
औ कीकर छूट सकै
इण सीसै री कैद सूं।
घड़ी री टक्-टक् साथै
खट्-खट् आखरां खटती जिंदगाणी
जीवण सारू लाजमी व्हेगौ ‘ओवर-टाइम’
मसीन रै उनमान व्है
आंखियां रौ उजास गमावतौ
केई गल्तियां करगौ
औ खुद रै इज कम्पोज में
छोड दिवी केई ‘सी कॉपियाँ’
सुख-सांयत री तमाम ओळियां छूटगी
दुख-दरद ‘डबल कंपोज’ व्हेगौ
जगै-जगै जरूरतां माथै
‘रोंग फोन्ट’ रा निसाण
खोसता रैया ओळखांण।
साहित्य व्हौ के कळा-विग्यान
खोज-खबर व्हौ के मान-सनमान
पग-पग सगळां सूं जूड़ियौ औ
बरसां सूं इणनै भूल्योड़ा सैग।
मूंगाई रै आंकूड़ियै अटक्योड़ी रोटी
अर मूंडै बिचाळै
बधतौ आंतरौ
कितौक तेज दौड़ै
औ रोटी री पकड़ सारू
कांई तद तांई के
जद रोटी झपटतां
ठोकर खाय हेटौ पड़ै
उण बगत रोटी माथै हेटै दबियोड़ी व्है
अर बाकौ फाटोड़ौ
उठी सै-चंदण माथै अठी घुप्प अंधारौ
वांरौ तौ सौख व्है आंरौ व्है भारी।
ठीक है के सरकारी नौकर
भत्तै सूं तोड़लै
मूंगाई रा दो-चार दांत
निजू नौकर रै मांस में
मूंगाई री बत्तीसी गड़ै है।
कांई इणनै अजै मिळी नीं आजादी
इणरा दिन बतळावौ कद आवैला
जे किणी दिन आय सांमी
रोक रस्तौ ऊभगौ
तद कांई थै इण सूं आंख मिळा पावोला?