पाणी रै रेलै में
कागद री नाव
छोड़वा रा वे दिन
बीत गया
नाव डूबती'क तिरती
किणनै फिकर ही?
अबाणे पगां
चड्डी-बनियान में
नाव रै सागै
दौड़ लगाता
बरखा-मंगळ मनाता
अचाणचूक
पाणी रा बुलबुला
री तरै अदीठ व्है गया
वे पल-छिन।
अबे सांचमाच री नाव है
जिन्दगी री
अर रेलै री जगां
भौ सागर है ओ
नाव है'कै
नीं तिरै
नीं डूबै
फकत झोला खावे है
बरसां सूं
भंवर में फँसियोड़ी
अर म्हैं भूल गया हां
ताळी बजाणो
नाव रै सागै कठां
तांई दौड़ा
जळ रो आर न पार
अर भंवर रो जंजाळ।
आंसुआं सूं भी भीजियोड़ी
रेत माथै बैठ’र
उड़ीकणो है
अनन्त काळ तांई
छेलो झोलो'कै
एक लै’र
जो इण नाव नै
परलै तीर माथै
ले जा’र पटक दे।