कदास

आदमी आपरै उणियारै

राखै निगैदस्ती।

पळापळ करती आंख्यां रै विच्चै

राखतौ थौडौ निसकारौ

हियै में बचावतौ

फिटकारां रा फफूंद

तो आज ए! करमां रा ऊंधां

सैधां-असैधां मिनखजात नै

नीं भरमावता मरियां पाछै ई।

कदास

हियै री हबोळा करती तळाई

जिण रै तूंडै में

सूख्यो है नही जळ।

उग आया है

लिछमी सूं लदया बावळीया

अर शेष है अजै ताईं

अपणापै रा आकड़ा

व्हानै चाइजै टेमसर

आंख्या री ऊंडाण रौ पाणी।

स्रोत
  • सिरजक : कमल सिंह सुल्ताना ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी
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