सूखोड़ा पीळा पांन

होळै सी'क

मायत डाळ सूं छूट जावै

कठै कीं नीं व्है

पण म्हारै कांनां कळपती खड़खड़ाट!

आकळियोड़ौ

अंगविहूण व्हैतौ म्हैं

सांभळूं सरणाटा रौ सिंधु राग

अर

करण लागूं जुद्ध

आपौ-आप नै पाछौ थरपण सारू!

स्रोत
  • पोथी : पागी ,
  • सिरजक : चन्द्र प्रकाश देवल ,
  • प्रकाशक : देवल प्रकाशन
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