पाणी री छाँट को न्हाखी नीं

कई दिनां सू चमकै है बीज

अर गाजै हैं बादल कालो!

तो हुई ही बात

कै कोई घरै बुलावै आपरै

पण जावां जद लाधै तालो।

स्रोत
  • पोथी : मोती-मणिया ,
  • सिरजक : सांवर दइया ,
  • संपादक : कृष्ण बिहारी सहल ,
  • प्रकाशक : चिन्मय प्रकाशन
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