बीज बळग्यो बीज!

धरती मं दब्यो-दब्यो

एक चुळ्ळू पाणी भी न्हँ बच्यो

कोरा नँसास पटक हेण्ड पम्प,

चड़ी तकाद तसाई गी

दन भर भमता भर्यां जनावर

दन भर उडता रह्या पखेरू

साँझ पड़यां घर आया

एक पत्तो भी कोई नं

रुंख ऊप’र

कसी डाळ प’ब’ढ़

धूपेड़ा कर्‌या घणा-

घणो घी बाळ्यो म्हंगा मोलां को

ढोल बाजतो रह्यो

गाता रह्या लोग बाग

देवतो न्हँ बोल्यो

सारी रात

चिलम का धूंधाडा मं

बस रही बतळाती

चमकीली आंख्या-झबरीली मूंछ्यां!

स्रोत
  • पोथी : राजस्थली- राजस्थानी भासा मांय जन चेतना री तिमाही ,
  • सिरजक : अम्बिका दत्त ,
  • संपादक : श्याम महर्षि
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