जीवणै अर मरणै रै बिचाळै
कोनी कोई तीजौ मुकाम
कोनी कोई तीजौ नाम
देस म्हारा रे।
थनै
आं दोनां मांय सूं
किसी अेक नै वरणौ पड़सी?
दोनां मांय सूं
कोई अेक काम करणौ पड़सी
के तौ जीवणौ पड़सी—अर के मरणौ पड़सी।
जे धार इज ली व्है
मरणै री
तौ पछै छुरी इण हाथ में
के फांसी रौ फंदौ उण में
के जैर रौ प्यालौ किणी हाथ में व्है
कीं फरक नीं पड़ै।
मूंगीवाड़ौ व्हौ
नै भलांई पुलिस रौ डंडौ
दोनूं
अेक सीरखौ घाव छोडिया करै
मिल री केबिन रौ कामदार
सेठीजतौ सरपंच
अर संसद रा साहूकार
मरण वाळां रा माथा
अेक सीरखा रोड़िया करै।
इण पूरी प्रक्रिया में
थनै कीं नीं करणौ है
फगत—रिभतां-रिभतां मरणौ है।
पण जीणै खातर—
नापणौ पड़सी अेक लम्बौ रस्तौ
मूंगौ पड़ौ
भलै सस्तौ
लड़णौ पड़सी अेक जुद्ध
लगौलग
न्यारा-न्यारा मोरचां माथै
वोटां री मंडी सू
निसरणौ पड़सी
कानां में डूचा देय’र
आंखियां मींच’र।
क्यूं के
अठै इज बणिया करै है
मौत री मंडी रा मायावी मालक
मुळकवीं मिसरी री मिकदार लियां।
इण मोह सूं
छूटणौ पड़सी—
(पण औ काम
है घणौ मुस्किल)
अठै नीं तौ काम आवै आंट
अर नीं अटकळ।
कोसां लग पसरियोड़ी
इण मंडी रै पार है
असली कुरुक्छेत्र
उठै इज है थांरै सांमी
थांरौ असली दुसमी
असल रूप साहूकारां रौ
उठै इज ऊठैला असली हथियार
व्हैला उठै इज
फैसलौ थांरी जीत रौ
अर मालकां री परदाऊ प्रीत रौ।
तौ, देस म्हारा रे!
औ इज है जीतण रौ ढंग
मरण सारू मौत
अर जीवण सारू जंग।