किण बिध जाणै आदमी
के
पीड़ाँ सूं ऊँडी बी पीड़ हुवै
रीसै डील टोपां-टोपां
हाड मांस रगत निचूड़ीजै
कूंख में हेत हेजतां
सहणैं की सींवां परै
हुवै बा पीड़ पैली रात की
झेलती रहवूं
सैंवती रहवूं
आखौ जोबन रुळाऊं
आदमी के गै'ल्यां!
बींद बण'नै घोड़ी चढ जाऊं
आदमी ने ब्याह की ल्याऊं
म्हारै माँ-बाबल की लाडलड़ी
म्हैं वां'को नांव चलाऊं!
छाती सूं झरै
झर-झर झरणा ममता का
चूंगता रहवै मसळता रहवै
माखण सी गौरी काया
आदमी का अणु, आदमी के नावं!
जापो हुवै आदमी के
जलमै म्हारा बाळक दोय
बातां की ब्याळू करै
जिकां न बेरो पड़ै, क कैयां
बींध नाख्यौ समूळौ शरीर
सिणगार के पेटै
बाँध दीन्या हाथ-पग
नागण ज्यूं लैरांता
काळा केश
राखण सारु कबजौ
आदमी को!
लादेड़ी डोलूं आखै जीवण
संस्कारां कै बोझ
राखणी पड़ै घूंघटै सूँ
आदमी की ओट!
लाज सरम की भौंथरी
रेखड़्यां,
टूटै, म्हारौ छौ फूटै!
जगतकार को सगळौ भार
खिंडाय नाखूँ,
दबेड़ी सांसां हुँकार बणै!
जुम्मेवारियां का भरिया
बौझळ मांट फोड़ नाखूँ!
आऊं जणा आऊं
जाऊं जणा जाऊं
म्हारो बी मनड़ौ चावै
बीन्या लाग लपेट
बेचींत आंख्यां दिखाऊं
सूखौ अ'र हळकौ
जीऊँ!
जे म्हैं आदमी होऊँ!