1
आ बखत है सरू करण री
बात लेनिन री,
पण, इण खातर नईं कै
कोई दुखड़ो अबै सेस नईं।
आ बखत है, कारण
कै खोटी भरम भरी चुगल्यां
बदळगी है,
अेक मातबर चीरतै दरद में।
आ बखत है दूसर संवारण री
बींरा सबदां नैं तोफानी बेग सागै।
फेर कईं म्हे
म्हारा काळजा उळीचां
रोवण में?
कोई मिनख जीवै नईं
जियां लेनिन
हाल जीवै:
म्हारो ग्यान, म्हारी सगती,
बै सस्तर रया म्हारी—
रुखाली सारू।
मानखो तो जाजां जिसो
चावै बै धरती माथै तिरै।
इण सूं पैली
कै बै पार उतरै
आपरी ठावी मजलां माथै।
बांरा हेटला सैतीरां
तळै चिप्योड़ा समदरी जीव
जिका खुद खुड़ावै,
बांरै सगळै मथीजतै
जोर सूं।
पण, आखर, जद,
आंध्यां उळांघ’र, बै जाज
सूरज रै नैड़ा,
किनारां माथै आय लागै;
समदर री कायां री
दाड़्यां रो मूंगास
बै उतारै।
अर नान्ही नारंगी माछल्यां रो
मैल कुचरै।
हूं मनैं आपनैं उजळावूं
लेनिन रै चानणै—
फेरूं आगै बधण
गदर रै समदर माथै।
अर, हूं फेरूं डरपतो
पाछो घिरूं
कईं लिखण खातर।
जिंयां कोई मोट्यार
संकै अर टळै,
कूड़ सूं।
बो सीस
अकासां में मुगट धार्यां;
मनैं डर लागै,
म्हारी सरधा री माळा सूं
कठै ई ढकीज नईं जावै,
बो असल
मानवी
चतर
विसाल
लेनिन रो
भंवारो।
हूं डरपूं
बीं समाधी सूं,
बीं जुलसां री सान सूं,
बिड़द री रात सूं
कठै ई म्हारो तरक नईं बिणसै,
अर बै ढक नईं नाखै,
कंवळै लेपण सूं
लेनिन
अर बींरी सादगी नैं।
म्हारी आंख री पूतळी खातर
हूं धूजूं।
संवारण हाळा कठै ई
आप री चतराई सूं
बींनैं बिदरूप करै नईं।
म्हारै मनड़ै तो
आपरी भावण बता दी,
हूं तो कपट कर नईं सकूं
अर, म्हारो मनड़ो
अठै गीत उगेरै।
आखै मॉस्को में
असवार्यां धूजावै
ईं बरफाणी धरती नैं।
अबै, पोरै रा जगरां माथै
अध-जम्या मिनख
निवता दीसै।
बो कुण है?
बीं कईं कर्यो?
बींरो जलम कठै हुयो?
क्यूं
अेक मिनख खातर
इत्तो घणो मान बरसै?
बोल माथै बोल
यादगारां मांय सूं खोदणा है:
कोरै अेक सूं काम सरै नईं—
अरै, बां सगळां नैं किनारै करो।
इसो कईं टोटो
कारखानै में
सबद रै!
किसा सबद ओप सकै
यादगीरी में बीं मिनख री
जिको मरग्यो?
म्हारै कनैं सात दिन है
बेसी नईं।
बारै घंटा
घड़्यां जतावै।
कईं जीवण चाल सकै
जियां पैली चालतो?
बिना छिमा मांग्यां
मौत खड़कावै है।
जे घड्यां घबरावै
बखत बतावती
अर कलेंडरां री मत
चूकै परी
‘बो एक समो हो’
म्हारी बाण्यां गावै,
‘अेक जुग’—
अळूझो सुळझावै!
अर, म्हे हाल ई सोवां
रात रा,
म्हे पाणी पीवां
सीतळ कोड में
जे ओ हुवै म्हारो पाणी
म्हारी आपरी गिलास में।
पण, जे अेक मिनख आवै
काबू करण खातर—
बखत रै उफाण नैं
अर बींनैं दूजै कानी बगावै,
म्हे कैवां,
‘किसीक अवतारी आतमा’
अर ‘किसीक अनोखी आकूब’
म्हे कैवां।
म्हे मिनख हां,
जीवण में जिकां रै कोई
सांग नईं
म्हानैं सीटी देय’र भेळा करो
नईं तो म्हे भटक जावां।
जे म्हे फकत
अेक लुगाई नै ई री झावता रया।
मुळकता
अर म्हारा सुणां रा
बखाणा करता,
जे
सरीर अर आतमा अेक कर,
अेक मिनख आवै
ईं रिफा आम मांय सूं
बो राजा दीसै
म्हे पथरीज्योड़ा
गुणमुणावां,
आ भगवान री बगसीस
म्हां माथै गाज सी पड़ै।
हळाहळ बोदी चावै स्याणी
बातां बधती ई जावै,
अर फेरूं हवा में ब्यापै,
हरेक बफारीज्यो बोल।
किसाक गोटा बाजै
आं थोथी टोपस्यां में?
काळजा अछूता,
हात अडोळ।
लेनिन खातर
किसाक नापीणा
राख सकां?
म्हां जोयो है ओ,
सगळो,
म्हे जाणां हां किसीक जिनगाणी
बो जियो।
म्हारी बारणां मांय सूं
जुग पग बधाया,
अर, म्हारा गोखां सूं
बींरो माथो नईं टकरायो,
फेरूं,
कुण लेनिन री मोटी लीक री
बात कर सकै,
‘म्हारो नेता भगवान री—
मरजी सूं?
जे बींनैं
जतावता
राजसी अर देवता,
बीरो नांव
तो, रीसां बळतो
बींरै लारै पड़ जावतो
किड़क’र,
सामो मंडतो
बीं लांबै जुलसै रै,
भीड़ माथै हमलो बोलतो,
न्यारै जावती भीड़ में
भगदड़ मचावतो।
हूं बीं सराप नैं
झैल लेवतो,
जिको धधकै,
उण गंघरफ रळ्ये
जोस सूं
ईं सूं पैली
कै बै म्हारी बोली नैं
डुबो नाखता,
अर मनैं धर दबावता
म्हारो कुफर
हूं बगावतो
सुरग रै अेकलखोरै
मूंडै माथै,
केमलिन माथै बंब फैंकतो,
बींरो नास मिलावण,
हूं हांफतो।
पण, बीं लास कनैं
अबै
जिरजिन्स्की हालतो हो,
बींरी गीदी बिना पोरै ही
‘चेका’
अबै छोड़ सकै हो।
लाखूं आंख्यां
दो आंख्यां
अै म्हारी आंख्यां
उफणै
आंसू रा टोपां में
करड़ी घड़्यां,
भळ टाळी,
परमातमा नैं आदत है,
घण मोटा बोलां री
जिणमें
मान अर दुखड़ो घुळै।
आज
बा टीस साची है,
काळजा फाटै
जे जम्योड़ा है।
म्हे आया हां
दफणावण
माटी रो पूतळो मिनख,
बां सगळां सूं बेसी
जिका मिनख री धरती माथै
आया
जीवण अर मरण नैं।
धरती रो
पण, बां जिसो नईं
जिका भटकै
दूखती आंख्यां लियां,
आपरी स्वारथ री
गुरांजणी में।
बीं झाली ही धरती
सगळी
अेक विचार रै वेग में।
अर आखै जमानां री पोलां
बीं खोली ही
सगळी कूड़।
म्हारै थारै जियां
जिको कईं,
बीं चायो अर मांग्यो,
फकत बांनैं छोड’र
जिका बींरी आंख्यां री
कोरां कनैं
फूटरै जाळ में
सळवटां रै
चामड़ी नैं झाल्यां—
अर होठां रै चारूंमेर
घणी मजाकां लियां
पेनी अर करड़ी
पण, सैनाण ई नईं
उण जुलमी रो,
जिको माथै मंडरावतो
अर लगाम रै झटकां सूं
खूंदतो जावै हो,
अूभ्योड़ै जुलम रै चक्कै हेटै।
साथीड़ां खातर
मधराई सूं जगमगावतो
बींरो हाजर हेत;
बैर्यां खातर
बींरी रीस भभकती
फोलाद में।
केई बार
मांदो पड़्यो
म्हारै ज्यूं
बातां धारी जिकी
खरी नईं उतरी।
केई बार
अर संकटां में घिर्यो।
जियां अरथावू,
हूं बिलियार्ड रमतो
म्हारी आंख्यां ताण्या करूं;
बींरो खेल, घणो जोगो हो
नेतावां खातर
सतरंज।
फेर बो मुड़्यो
सतरंज सूं
ईं दुनिया रै खेल कानी,
अर खूब खेल्यो।
काल रा मोहरा
जद जीवता मिनख हा
अर, मजूरां री ताकत
रुखाळ’र बीं थरपी,
पूंजी रा ढिगां माथै
मिनखां री
कैद-कोटड़्यां।
2
जे
थां दरसायो
अजबघर में
अेक बोल्सेविक
आंसुवां में,
सगळै दिन
बै अजबघर रे चिप्योड़ा रैवै,
बीं नैं जोवण नैं।
कोई इचरज नईं—
थे जोय नईं सको बिसो
बरसां में।
पंचमुखी तारां सूं
म्हे दागीज्या
पोलेंड रा परगना सूं,
जीवता गाडीज्या
धरती में गळै ताईं
मोमेन्तोव रा लूंटारां सूं
इंजन री भट्टयां में बाळीज्या
जापानी हित्यारां सूं,
मूंडां में गळ्योड़ो सीसो
अर गोळ्यां भर्यां म्हे—
‘सरण लेवो!’ बै गूंज्या
म्हां माथै
पण,
जगता आंतड़ां रै
बारकी-छेकां सूं
‘साम्यवाद अमर रैवै’
अै ई फकत सुर निसर्या।
कतार माथै कतार
सगती लियां अणपार,
ओ लोह,
ओ फोलाद,
बातां हाल खतम नईं हुई,
भेळा हुया
बाईस जनवरी नैं
सोवियत कांग्रेस रै
पांचमंजिलै दफ्तर आगै,
हेटा बै बैठग्या,
मसखर्यां करता
अर दांत पीसता,
बातां सै हुई
काम री रीत सूं।
‘खुलण री बखत है!’
बै आवणा सरू क्यूं नईं हुया?
अठै
आ कईं मंतरीमंडळ री फूट?
क्यूं आंख्यां
राती हुयां जावै
बीं मंच रै मुखमल जिसी
जोवो कालीनिन कानी—
बो डिगतो सो’क चालै
कईं तो हुयो?
बै आ बात बता क्यूं—
नईं सकै?
कईं हुवै जे बो खुद ई हुवै?
नईं, असलीक...’
कागडोड री छियां ज्यूं
छात
म्हां माथै उतरती सी’क लागी,
अचाणचक
काळी डरपावणी अर
उदास हुवती
दीसी तिरती रोसन्यां,
फानूसां री।
सरणाटो टूंपै हो
घंटी री अणचईजती टणक।
उठ्यो
कालीनिन जूझतो बध्यो
नसां तणीजती।
आंसुवां
जावो, जतन करो बांनैं चबावो
मूंछां सूं अर झुर्यां मांय सूं।
बां, बींसूं दगो करयो।
चिलकता
डाढ़ी री तीखी नूक
माथै।
रतनाळ्यां जगै—
बांनैं थ्यावस देवण री
आस नईं;
ख्याल अळूझ्योड़ा—
भींतां ज्यूं माथा,
बै मांडै हा;
‘काल सिंझ्या
छै बज’
पचास मिन्टां माथै
मरग्यो
साथी लेनिन’।
बीं बरस
जोयो अेक दिरस
जिको पीढ्यां फेर जोवै नईं
बो दिन
राखैलो संजोयां
आपरी का’णी दुखड़ै री
नित-नित सिसकतो।
भैभीत
लोह सूं निचोईजती
अेक बुझती हाय लियां।
बोल्सेविकां री कतारां
सिसक्यां री लैरां में
बैवती।
किसोक भार!
म्हांनैं आपनैं म्हे ई
डीलसूधा ढोवै हा।
‘विगत लेवो
कणै अर कठै?
बै बींनैं क्यूं लुकावै
धत्?’
गळ्यां अर सेर्यां मांय सूं
अेक धोळी अफवा नीसरी,
बोल्सोई ठेठर
तिरण लागग्यो,
हरख
सीप रै घूंघै ज्यूं सिरकै,
सोग
कदे ई धीमो नईं पड़ैलो।
सूरज
चमक्यो नईं,
बरफई
पीळी पड़ी नईं।
आखो सैंमांर
अखबारां री झोळी मांय सूं
ठंड बरसावतो
कोयलै जिसी काळी बरफ सूं
मजूर
आपरै पुरजां माथै निंव्योड़ा—
खबरां
झपटै ही बां माथै
अर, गोळी ज्यूं दाझै ही।
अर इयां लागतो
जाणै,
प्यालो भर आंसूड़ा
बींरै राछां माथै
अूंधाईजग्या।
अर बो करसो
थाक्योड़ो अर अंजर-पंजर हुयो
जिनगाणी सूं,
मौत
जिकै नैं अेकर सूं बेसी बार
चिनो’क चूकगी।
मुड़’र—अळघो हुयो
आपरी लुगाई सूं
पण, बीं झालली
बा धूड़,
जिका गुदळीजी बींरी मुट्ठी सूं
केई ओर हा—
कोई भाटो इसो करड़ो अर
कठोर नईं
तो ई,
दांत भींचता
आपरा होठां नैं चबावता।
टाबर
अेक पळ में उदास
अर बूढीजग्या
अर,
धोळै खतां हाळा बूढ़ा
कूकण नैं लाग्या।
बायरो
आखी धरती माथ
उणींदो,
दुखड़ै में बिसूरतो
अर, बो बागी
ईं विचार नैं
सहण नईं कर सक्यो,
कै, अठै,
मास्को में
अेठ ठरतै कमरे में राख्योड़ो
बो पसर्यो है—
बेटो अर बाप दोनू
गदर रो।
अंत,
अंत,
अंत...
सगळी अरदास
बेकार!
काच
अर नीचै—
बो मुयोड़ो।
ओ बो है
जिकै नै बै पावलेत्सकी ठेसण
सूं लाया
बीं सै, र मांय सू
जिकै नै बीं हजूरां सू
मुगत कर्यो।
ओ मारग
अेक घाव जिसी
सिड़सी, ओज्यूं सिड़सी
ईंसूं ईंरो दरद कटसी
अर पाकसी।
अठै हरेक मोची
जाणतो लेनिन नैं
पिरतख,
बीं चाल री धुन सूं
जिका अक्टूबर रा पैलड़ा
हमलां री ही।
अठै, हरेक नारो
झंडां माथै आंक्योड़ो,
सोचायो
अऱ
बतायो हो, बीं खुद,
अठै, हरेक कीरथंभ
बींरी बातां सरावतो।
बींरै लारै हर जठै जावण
थिर अर थावर
अठै लेनिन ओळखीजतो
कारखानां अर दफ्तरां,
दोनुवां में।
काळजा बिछ्योडा है
सनोवर रा रूंखां दईं,
बींरै मारग में
निंवता!
बीं
मारग बताया,
लोह लियो,
आपरी जीत रो अकास—
बाण्यां रै
जोर माथै।
अर जोवो—
सरबहारा री
सत्ता थरपी।
अठै, हरेक करसो
लेनिन रो नांव समझ
मूंघो, बां सगळा नांवां सू
जिका बाइबिल में पूजीजै
कारण, आ धरती
लेनिन रै हुकम सूं
हुयगी ही
बीं री आपरी—
अेक सपनो
जिण खातर बींरा बडेरा
उठ्या अर खतम हुया।
अर,
साथी गदर रा
लाल चौर रै तळ मांय सूं
कानां में कैवता सा
लागै हा
व्हाला, सैण,
जिवो अर ईं सूं
मोटै न्याव री दरकार नईं।
म्हे दस बार मरस्यां
ईंनै’ पूरो पाड़ण खातर’।
ओ बोल कैईजण दो
अेक जादूगर रो,
म्हां खातर मरण नैं
जिण सूं
बो जाग पड़ै।
गळ्यां री सीवां उफणती सी
बांरा किनारा
बाढ़ में डूबता सा
अर सगळा
मरण सारू जासी
अणकथ्ये हरख में।
पण, फेर
कोई चमत्कार नईं।
फकत लेनिन।
लेनिन
बोंरी अरथी
अर,
म्हारा निंवता कांधा,
ओ मिनख
अेक मानवी हो—
हरेक सूं घणो
मानवी।
ईं नैं उठावो—
ओ दुखडो
जिको मानव्यां नैं
धधकावै।
कदे ई नईं हुयो
कोई भार इसो घणमूंघो,
अूंचायोड़ो
जनता रै समदरां सूं
ईं लाल अरथी हाळो
जलूसां सूं उठायोडो।
सोवियतां रै संघ रै घरे
उदास रागणी अर सापै सागै
सिलामी रो मुजरो,
कदेई स्यात इसो बण्यो
वीरां रो
बींरै बुधबळ अर सगती रा
वारस।
जद भीड़ां,
बेताब,
आगीनैं अूमटती
पाड़ोस रा आसा-पासां सूं
1917 री रोटी री—
मरजाद-रेखा,
कोई इसी भूख
आगै बधा नईं सकै—
काल जीमणो चोखो,
पण, ईं कड़वी,
जमती,
भौ री रेखा सूं,
टाबरिया,
मांदा सगळा
सोग में हालता।
सागै-सागै
गांव अर सै’र कतारां में
टाबर, जवान
लटक्योड़ा दुखड़ै रै बोझसूं
मैनत रो सैंसार
चाल्यो परेड करतो,
जीवण रो सरबस
लोनिन री मौजूदगी में
हेठै निंवती
सूरज री किरणां
दिरखतां मांय कर पड़ती—
आडी नीचै
घरां रै ढाळां माथै सूं,
पीळी
ज्यूं कोरड़ा-खायोड़ी
निंवती चीनियां जिसी,
आपरै दुखड़ां में डूबी
आस रो पिछतावो करती।
रातां तिर्यां जावै,
दिनां रै कांधां माथै
घड़्यां गुदळी
अर तारीकां अळूझ्योड़ी,
इयां लागै,
जाणै रात नईं
आपरी तारां हाळी
किरणां सागै,
पण,
हबसी अठै हा
आपरा देसां रा आंसड़ा लियां।
पाळो,
सुण्यो नईं इसो,
पगां नैं सूना करतो,
पण दिन बीतग्या
बीं दोरै जड़ाजंत करतै
सी में।
पण,
कोई हीमत नईं करै हो
हाथां नैं बजा’र गरमावण री
सान्त!
पाळो,
घणो बेग सूं जकड़्यां जावै
अर दुख देवै हो,
जाणै,
पारख करै
किसीक करड़ी
हेतां पाळी भावण है,
गिरद्यां नैं चीरती
अर गळा मोसती,
सरदी,
छींकै ही
गिरद्यां रै सागै
खंभां री ओट में,
कदम बधै
समदरी सिलाबां ज्यूं
सिरकै,
सांती, सांसां अर सिसक्यां
थमै
ईं नैं कियां पार करां,
भरोसै सूं घणी डरपावणी,
बा हतभागण।
च्यार कदमां री,
अणथमी पगां री धुन?
बा धुन
पीसै-पीसै री तरक सूं
जुगां री,
बीं मौटै बादसा सोनै री
मनचाई;
बा धुन—
अर
बींरै सागै—
बा अरथी
अर लेनिन।
आगै—
सोवियत पंचायत
आपरी सान दरसावता।
लेनिन रो लिलाड़
मातर ई थां जोयो।
अर,
नदेज्दा कोन्स्तेन्तिनोन्वा
लारै,
आकळ-व्याकळ।
हुय सकै, जे
आंख्यां में आंसू थोड़ा
कमती हुवता
तो मनैं घणो दीसतो...
निरमळ आंख्यां सूं तो
हूं घणा हरख रा दिन
जोवतो रैयो।
तिरता झंडा झुकै
आखरी सिलामी देवता
अर,
रेसमी लै’रां में बधता।
‘सीख तनैं,
साथी,
जिको चालतो रैयो
अैक मोटै जीवण सू
आगै...’
भौ!
मींचो थारी आंख्यां
अर चालो आंख मूंद्यां
अणंत मारग रै
कस्योड़ै जेवड़ै माथै।
जाणै,
अेक मिन्ट खातर
सामोसाम
बीं मोटे मिनख सागै
रैयगी
कोरी साच।
तोई हरख।
म्हारो डील
पांख जिसो हळको—
तिरै है,
चाल री समरस धारा में।
हूं नैचै जाणूं—
आज सूं अर हमेस खातर
ईं मिन्ट रो च्यानणो,
म्हारै अंतर में
जोत जगायां जासी।
ओ किसोक हरख
ईं मेळ में रळण में,
आंख्यां रा आंसूड़ा ई
सगळां भेळा सीर घालै,
ईं—
घणपवीतर
जबरै संगम में
बीं सागीड़ी भावना सागै,
बा भावना वरग री,
झंडां री पांखां अूतरै
अेक माथै अेक,
काल री लड़ायां में
फेर उठण सारू।
‘बै म्हे खुद हा,
व्हाला भाई
जिकां मूंदाई
थारी चीलक जिसी आंख्यां...
कांधै सूं कांधो—
हारण नैं नईं!
झंडा काळा,
आंख्यां ललाईजती,
आंसूड़ा चिलकता,
लेनिन नैं आखरी सीख देवण
आया सगळा
धीमा पड़ता
समाधी माथै।
आगै बध्यो मातमी जुलस,
भासण बैवण लाग्या।
अरै, बोलणो तो ठीक ई है,
दुखड़ो तो ओ है
कै, फकत अेक मिन्ट रैयो—
बींनैं कियां काळजे लगावां,
इसै मतवाळै दिरस माथै!
बै बारै कतार में
अर निजरां में भौ लियां,
अूपर जोवो,
बा उदास, बरफढाकी थाळी,
किसीक भरमीजी
स्पास्काया घंटाघर माथै
सूयां नाचै!
अेक मिन्ट—
अर आखरी घड़ी बीते—
सटाक!
थमज्या,
ईं खबर सूं,
मानखा,
अर हुयज्या गूंगो
जिनगाणी,
चळहळ,
सांस—
थमज्या।
धरती,
नीचो पसरज्या
अर गतहीण
जमज्या।
खामोसी
मोटां में मोटै जोधै रो अंत।
तोपां दगी,
अेक हजार, स्यात।
पण, आ सगळी तोपबाजी
गूंजी धीरी,
बां पीसां सूं,
जिका मंगतां री
टोप्यां में बाज्या।
खंचता,
कस्टीज्या,
हरेक आंख रा कोया
हूं अूंभो,
अधजम्यो
फंस्योड़ै सांस में
झंडां रै धुंधळकै में,
म्हारै सामो उठै
अंधरावतो
सैंसार,
इसो घिरै जाणै मौत
अर अूपर—
आ अरथी मानखै रै सोगतं,
म्हारै सागै,
मिनखाजात रा दूत,
बींरै चारूंमेर,
करम अर गदर री
उठती आंधी में,
रचना करण
अर पूरण नैं,
ईं सगळै दिन
जिकी थापना हुई