जीयां के तूट जावैली बार्‌‌‌‌‌‌‌‌‌यां,

इत्ती आगती उंतावळ सूं

म्हनै गळबंधण बांध

ताती सळाखां डांम म्हारी छाती

निसरगौ बारूंबार बगत। अर अबै हर खण

बंध्योड़ै गैलै घोड़ै री गळांईं पगचाप

बाजै हरेक बारी हेटै भाटै माथै

गुप्तचर, थारौ परिचै दै

मूंन तोड़, किणीं अेक फूल रौ नांव बतावतौ जा

बतावतौ जा, नीं तौ, देखै है छुरी

थारी कीरत रै गुबारै ठींडौ कर न्हांखूंला।

म्हैं उण नै चूम भाळ्यौ, नीं जस

नी संपत, सनपांत नीं, कोरौ

ताती सळाखां रौ चिरथाई गळबंधण—

अर थाक्योड़ी उदास वैस्यावां सारू

निरांयत लाग—म्हारै मांय।

सोच्या करतौ, बीमार तौ सिरफ डील व्है, मन थोड़ौ

सोच्या करतौ, मनस्यावां रौ मिंदर

अर जंगल औई है, मन थोड़ौ

जिकौ कीं व्हौ, इणीं बारी पसवाड़ै ऊभौ रैवूंला

सगळौ दिन अर सगळी रात इणी ढालै काढूंला।

स्रोत
  • पोथी : परंपरा ,
  • सिरजक : शक्ति चट्टोपाध्याय ,
  • संपादक : नारायण सिंह भाटी ,
  • प्रकाशक : राजस्थांनी सोध संस्थान चौपासणी
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