अब नीं देखणौ पड़ै काती रौ चाँद के
धरती री कोई पळापळ करती सुबह
अबै जांणै किणी दिन म्हारी आँख री कोर माथै
आभै री प्रतीभा, सिंझ्या-नद रा लच्छण अर
रात-रहस री गाढी भासा कंपीज नीं ऊठै
कंपीज नीं ऊठै धरा रै दिगंत रौ प्रजळतौ तारौ!
रातै चोळ बळबळतै चींपियै सूं थे म्हारी दोन्यूं आंख्यां काढलौ—
वै दोय आंख्या, जिकां री बुद्धी रै उजासआळी मिरतु हीण विद्रोही ज्वाळा में म्हैं
देखी है निरमम आकास रै नीचै मानवी मिरतू री हेमाळी मूनता
देख्यौ हूं म्हैं, बेघरबार कंवरी री आंख्यां में
तिरतै नैण जळ सरीसौ कुहासै सूं ढक्योड़ौ दिन,
देख्यौ हूं म्हैं मोहम्मद, ईसा अर बुद्ध रौ घायल हिड़दै वांरौ रगत
टपक रह्यौ है, अलेखूं धोळा दांतां री कुटिल हिंस्त्रा रै मांय
अब जांणै नीं देखूं मरवण रा सपनाळू कंवळा सुनैरी बाळ
किणी सांवणी रात में बारी माथै धर्यौड़ै उणरै मुखड़ै री गंभीरता
अब जांणै म्हारी आँख री कोर माथै
कंपीज नीं जावै पूनम री चांदणी री लैरां
म्हारै देस री रगतहीण देही
इण पछै ई म्हारी आतमा रा स्वर दीठ री प्रतीभा पसारैला
अमावसा में डूबियोड़ा प्रांणां री नस-नस में
प्रमेथ्यूज रै गीत री गळांईं म्हारै गळै रौ रुद्रोद्वळ चीत्कार
कंपाय देवैला इण धरती रा दिगदिगंत
फाट'र टुकड़ा-टुकड़ा व्हे जावैला मिश्र रै स्फिंक्स री प्राचीनता
लोपीजैला थांरी रात रौ प्रजळतौ तारौ, दिन रौ सूरज।
म्हारै सूरज रूपी काळजै रा टुकड़ा-टुकड़ा कर दौ
ज्यूं कोई धंधौ करतौ फळ बेचाणियौ आपरी धारदार छुरी री हिंस्त्रा सूं
टुकड़ा-टुकड़ा करनै काटतौ लाल सुरख सेव।
पण सुणौ, रगत रौ अेक टपकौ ई नीं पड़ै जमीं माथै,
क्यूंके म्हारै रगत री बूंद-बूंद रै मांय ऊजळी धार सरीसौ
दौड़ रह्यौ है मंसूर रै विद्रोही रगत रौ लखाव।
थे टुकड़ा-टुकड़ा कर दौ म्हारौ काळजौ—
जिण काळजै में बारंबार फड़क रह्यौ है म्हारी माटी रौ हेत
वौ हिड़दै—
मां री पविताऊ आसीस ज्यूं
बैन री हेताळू, निरमळ निजर सरीसौ
मनवण रै हिवड़ै रा सबदहीण गीत रै उनमांन
सांयत री चांदणी इंछी ही इण धरती रा आकास नीचै
चेत री तेज़ी में सावण री पूनम में।
दुहाई चंगेज री नागी तरवार री हिंसता री
दुहाई, फराऔ री ममी-दग्ध वीभत्सता री,
दुहाई, तैमुर रै पिसाची रगत-नसै री,
थे लोग मिटाय दौ म्हारौ अस्तित्व
धरती माथै सूं सदा सारुं मिटाय दौ
घ्रू तारै सरीसौ म्हारौ तेजस्वी अस्तित्व
मिटाय दौ, मिटाय दौ।