रात धनख डोर ज्यूं तरणावै

रीस में भरियौड़ी

धोरां धूजै मैंदीवरणी रेत

रूंख रुखाळी बिनां तड़फा तोड़े

गिगन मांदगी रै दोवड़े में ल्हुकतौ

कळेस रा आखर चुगतौ

ऊंडी लाम्बी निसांस छोड़े।

सरणाटौ घणौ बिकराळ घणौ संकाळू है!

अन्तस में ऊकळे अपसूंण

आँख्यां में कांकरा

रड़कै....माळ-जंजाळ

'हाथां सूछूटती जावै लाव

गोडां ताई आयग्यौ

तिरसौ पाताळ

कुण निगै राखै फूल-पानका री

समै रौ डूंगर नचींतौ अर निंदाळू है!

च्यारू कूंट अखूट अंधारौ

इतियास जणै-जणै रा मूंडा औळखतौ

सूत्या सबदां नै

मुड़दां रा घर-गोखा टोवतौ फिरै

इण खुणै काळस

उण खुणै झूंठ रौ कीच-कादौ

कठै बासदी कठै बळबळता अंगार

कठै जिनगानी रौ चानणौ।

कठै नुंवै निरमांण रौ गारौ

बीकाणै सूं

दिल्ली दरूजै रै बीच

भचीड़ा खावतौ भटकै

कदै कचेड़ी कदै लालकिल्लै रै साम्हीं

माथौ पटकै।

अेक मिनख रौ अळसायौ उणियारौ।

पून पांणी री पलको-पलकां तिरै

जंगळ में

काळौ घोड़ो कुदड़का करै!

स्रोत
  • पोथी : पगफेरौ ,
  • सिरजक : मणि मधुकर ,
  • प्रकाशक : अकथ प्रकाशन, जयपुर
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