सूरत जिणरी प्रीत संजोवै।

मा ममता री मूरत होवै।।

नैणा सूं हरपल रस बरसै,

पीवण सारूं अंतस तरसै।

ज्यांरा पौर जदै भी परसै,

रोम रोम रीझै हिव हरसै।

आशावां रा फूल पिरोवै।।

सूरज जींनै देख्यां जागै,

दिनड़ो ज्यांरै पाछै भागै।

चांदो बुझ्यो-बुझ्यो सो लागै,

जगती उणसूं कुण आगै।

नीं थाकै कांधै घर ढोवै।।

जीं रा बोल प्रीत रा प्याला,

चरणां मांहे तिरथ शिवाला।

जीं रो सुमिरण प्रभु री माळा,

ज्यांरा अमरित भर्या निवाळा।

आंचळ में सुख सपन संजोवै।।

मायत जिनगाणी रो गहणो,

पूरी सरधा सूं सब पहणो।

बिसराओ मत वां रो कहणो,

सुरग सरीखो मा संग रहणो।

ज्यांरा बैण सैण मन मोवे।।

स्रोत
  • पोथी : कवि रै हाथां चुनियोड़ी ,
  • सिरजक : कैलाश मंडेला
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