म्हारै काळजै

हेत रो हींडौ है,

थूं जे रंगज्या

म्हारी प्रीत रै रंग

तद भलांई—

प्रीत हींडै

उबकली मचकाय,

पण राखीज्यै ध्यांन

मांगै समरपण

प्रीत हींडै री जेवड़ी!

जे जलम्यो थारै काळजै

मरदजात रो गुमेज

हुय जासी हींडौ

लोहीझरांण

बळ जासी

काळजियै पळती

प्रीत रूंख री जड़ां,

रित जासी

प्रीत रो रंग,

मून हुय जासी

प्रीत रौ गीत!

स्रोत
  • पोथी : इक्कीसवीं सदी री राजस्थानी कविता ,
  • सिरजक : कृष्णा जाखड़ ,
  • संपादक : मंगत बादल ,
  • प्रकाशक : साहित्य अकादेमी ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण
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